Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Somkirti Acharya
Publisher: Jain Sahitya Sadan

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Page 16
________________ P.P.AC.GuntanasunMS. कर कह कहने लगी हे प्रभोप की हे लिए मैं I TY SHO शुलपति / हो गया है। मैं को कोम ar,anfringemedies g warsa है।" हसना कहकर उबाले मायाको साथियों से मुदि gm प्रासबों में RJEE aari सब को || प्रसनतापूर्वक आशीर्वाद प्रदान कार नारद बाबिपी miga-ASTRI ने ही खड़ी हुई। युवती को देखा। उन्होंने राजा पीटर की मंमिनी से मिला या कौन तब उसने अपनी मातृ-पुत्री कृष्णिमटी) का परिचय कराते हुए उससे मुनि का चरण-स्पर्श करवाया। नारद ने आशीर्वाद देते हुए कहा-'हे पुनी! तू CTETणा राशी बनेश पुति को देखो भविष्यवधी. सुन कर रुक्मिशी को बड़ा आश्चर्य हुखा। वह अपनी बुखाशी ओर देख लो। बुबा ने भी शुविका विस्म / कारी कथन सुना था। अतः उसने जिज्ञासा.कट को-'प्रभो ! अपने दौसा माशीर्वाद दिया ? जिस महाराज श्रीकृष्ण का बाप ने मानोबार किया है, वे कौन हैं ? उनका निवास, कुल एवं उनकी आयु क्या है ? उनकी रूपाकृति एवं ऋद्धि कैसी है? बाप कृपा कर यह सब बलायें / ' नारद ने कहा- 'तथास्तु / मैं महाराज श्रीकृष्ण का परिचय देता हूँ, जिसे ध्यान से सुनो महाराज श्रीकृष्ण सौराष्ट्र देश की द्वीरावती नगरी के अधिपति हैं। वे जान कुलभूषण, हरिवंश के श्रृङ्गार-स्वरूप तथा कामदेव सदृश रूपवान हैं। उन्हें विपुल द्धि-सिद्धि प्राप्त हैं / सहसों यादववंशी वीर उनके स्वजन हैं तथा उन्होंने अनेक प्रबल शत्रुओं का विनान किया है। सैकड़ों राजा उनकी आज्ञा का पालन करते हैं। श्रीकृष्ण ने बचपन में ही महाभयानक पूतना का वध किया था, गोवर्धन पर्वत को अपने अंगुष्ठ पर उठा कर गौषों की रक्षा की थी। उन्होंने यमुना नदी के कालिया नाग को नाथ कर उसका मान-मर्दन किया था। एण-संग्राम में उनके द्वारा कंस तथा उसके प्रबल योद्धा चापूर का अन्त हुला। केवल इतना ही नहीं, समुद्र तट पर जाकर उन्होंने देवों को अपने वश में कर द्वारिकापुरी (बारावती) बसाई। जिनके भावी जिनेश्वर / नेमिनाथ के सदृश भ्राता हों, उनके प्रताप का वर्णन करना स्वयं बृहस्पति के लिए भी कठिन है / तब मेरी वाणी की मला क्या सामर्थ्य है ?' नारद की उक्ति सुन कर राजा भीष्म की भगिनो ने रुक्मिणी से कहाLI 'हे पुत्री ! तू मे सुना या नहीं? इनके बचन को ध्रुव सत्य मान।' तब रुक्मिणी कहने लपो-'हे बुना। च Jun Gun Aarat Trust

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