Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Somkirti Acharya
Publisher: Jain Sahitya Sadan

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Page 15
________________ PP Ad Gunanasuri MS न कर पाये कि क्या करना चाहिये, कहाँ जाना चाहिये ? किन्तु उन्हें तो सत्यभामा का अभिमान भङ्ग करना था, अतः नारद अपने निश्चय पर दृढ़ रहे। उन्होंने विचारा-'जब वैसी सुन्दरी विद्याधरों के महलों में नहीं हैं, तो फिर कहाँ मिलेगी?' पुनः विचार कर उन्होंने संकल्प कर लिया कि चाहे जो हो, सम्पूर्ण भूतल भर में भ्रमण | कर एक सुन्दरी कन्या का सन्धान कर सत्यभामा का अभिमान विचूर्ण करूँगा। तदनन्तर वे भलोक पर भ्रमण करते हुए भूमिगोचरो राजाओं की राजधानी में गये, पर वहाँ भी सत्यभामा जैसी सुन्दरी न दीख पड़ी। पर दृढ़-निश्चयी नारद खिन्न एवं उदास होने के उपरान्त मी अनवरत भ्रमण करते रहे। एक दिन जब नारद माकाश-मार्ग से गमन कर रहे थे, तब संयोगवश कुण्डनपुर नगर में जा पहुँचे। वह समृद्धि का आगार तथा गुणवतो-रूपवती कन्याओं का भण्डार था। इस नगर का अधिपति राजा भीष्म था, जो सर्वमान्य, विख्यात, परोपकारी तथा ऐश्वर्यशाली था। उसको रानी श्रीमती अनुपम रूपवती एवं सद्आचरणशाली थी। नारद के आते ही राजा भीष्म सिंहासन से उठ खड़ा हुआ। उसने भक्तिपूर्वक नमस्कार कर उन्हें अपने राज-सिंहासन पर विराजमान किया एवं स्वयं अन्य सिंहासन पर बैठा। कुशल प्रश्न पूछने के पश्चात् नारद ने राजकुमार रूप्यकुमार को देखा। उसकी सुन्दरता देख कर उन्होंने विचारा कि इस राजकुमार की भगिनी अवश्य हो परम सुन्दरी होगी। अब मेरी चिन्ता दूर हो सकेगी। ऐसा विचार कर नारद ने राजा भीष्म से जिज्ञासा की कि यह किसका पुत्र है ? उत्तर में भीष्म ने कहा-'हे मुनिराज ! आप के पाशीर्वाद से मेरा ही पुत्र है।' तब नारद ने पूछा-'इसकी माता की कितनी सन्तानें हैं ?' राजा ने उत्तर दिया-'एक पुत्र एवं एक पुत्री।' नारद ने कहा-'हे राजन् ! अवश्य ही तुम भाग्यशाली हो, पर यह तो बतलाओ कि तुम्हारी कन्या विवाहिता है या अविवाहिता ?' राजा ने कहा-'अभी है तो अविवाहिता. किंत घेदी नरेश शिशुपाल की वाग्दत्ता हो चुकी है।' यह सुन कर नारद को जो अपार प्रसन्नता का अनुभव हुमा, वह अपूर्व था। कुछ देर तक दोनों में वार्तालाप होता रहा। इसके उपरान्त नारद उठ कर खड़े हो गये।। उन्होंने कहा- 'हे राजन् ! मैं आपका अन्तःपुर देखना चाहता हूँ।' राजा की स्वीकृति लेकर नारद रनिवास देखने गये। राजा भीष्म को एक बाल-विधवा भगिनी थी। उस विदुषी ने बाह्य लक्षणों से नारद मुनि को पहिचान | लिया। वह हाथ जोड़ कर खड़ी हो गयी तथा यथोचित सत्कार कर उनको योग्य सिंहासन पर आसीन करा Jun Gun Aaradhak Trust

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