Book Title: Paiakaha Sangaha
Author(s): Manvijay, Kantivijay
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala

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Page 8
________________ पाइअकहासंगहे। RORSCA सम्पादकीय वक्तव्य % A श्लोकोमांधी १-५ अने २० थी २६ सुधीना एम कुल नब श्लोको अत्रे अमे आ वक्तव्यमा एटला ज माटे आप्या छे के एना आधारे प्रन्यनुं नाम, प्रन्थकारना गुरुनु नाम अने ग्रन्थनी वस्तु सौ कोईना ख्यालमा आवी शके. आ प्रति अपूर्ण होवाथी चौद कथाओ पैकी अघटकुमार सुधीनी आठ ज कथाओ आमा छे. क्रमसर गणतां अघटकुमारनी कथा नवमी थाय छे. परन्तु आ प्रतिमा त्रीजी मदनसेननी कथा नथी. एटले आठ ज कथाओ छे. B अने संज्ञक प्रतिओमां पण आ मदनसेननी कथा मळी शकी नथी. तेवी रीते चौदमी श्रेष्ठिपुत्र कमलनी कथा पण त्रणे प्रतिओमाथी एके प्रतिमा मळी नथी. एटले आ बे कथाओ अमे आपी शक्या नथी. आ प्रति सारी हालतमा छे. पुष्पिका आदि काई पण',एमां नथी. Bसंज्ञक प्रति-आ प्रति पण उपर्युक्त भंडारनी ज छे. तेनो तत्रत्य जूनो हा नं. ४८ अने नवो डा.नं. १५७/१ छे. पत्र संख्या १५४ छे. आ प्रतिने अनेक स्थळे उधेइए जर्जरित करी क्षत-प्रहत करी नांखी छे. पत्र ५३ थी ५७ सुधीना पांच पत्रोमा तो जमणी वाजुनो लगभग एक षष्ठांश भाग तो अलग थई गयेलो होवाथी खोवाइ गयेलो छे. ए भाग ग्रन्थपालनी बिनकाळजीथी के उपयोग करनारा पैकी कोईनी बेदरकारीथी खोवायो छे तेनी अमने माहिती नथी. परन्तु आq तो केटलीए महामूली प्रतिओ माटे वन्यु हशे ते तो ज्यारे भंडारोनी प्रत्येक प्रतिओ बारीकाइथी तपासवामां आवे त्यारे ज प्रामाणिकपणे कही शकाय. आ प्रतिना डामडा उपर द्वादश कथा एव॒ नाम आपेलुं छे अने तेमां पत्र १ थी १४१ सुधीमां आ ग्रन्थमा संपादन करेली बारे कथाओ विक्रमसेन चरित्रमाथी उद्धार करीने लखेल छे अने तेनी पछी पत्र १४१ थी १५४ उपर अमरचन्द्रमरिकत विभक्तिविचार प्रकरण छे. जेनुं संपादन अमे विक्रम संवत २००६ मा कयु छे. आ प्रतिमां पण पुष्पिका आदि कोई ज नथी. 5 %

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