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नियुक्तिपंचक एक काल में न होकर विभिन्न समयों में हुआ अत: यह संकलन सूत्र है, एक कर्तक नहीं। इसके कुछ अंश बाद में स्थविरों द्वारा जोडे गए हैं। इसका प्रबल प्रमाला है केशिगौतमीय अध्ययन । दूसरी बात सम्यक्त्व-पराक्रम अध्ययन में जो प्रश्नोत्तर हैं. वे अंगसूत्रों की प्रश्नोत्तर शैली से बिल्कुल भिन्न हैं।
गर्ल शान्टियर का अभिमत है कि यह प्रारम्भ में नूल रूप से बौद्ध ग्रंथ धम्मपद और सुत्तनिपात के समान था। संभवत: इसमें सैद्धान्तिक विषयों का प्रतिपादन करने वाले अध्ययन नहीं थे। केवल संन्यासी जीवन की आचार-शैली और धार्मिक कथाएं ही संकलित थीं। कालान्तर में इसका स्वतंत्र महत्त्व स्थापित करने हेतु यह अनुभव किया गया कि इसमें धार्मिक, सैद्धान्तिक. दार्शनिक विषयों का सनावेश किया जाः। अत: परवर्तीकाल में इसमें सैद्धान्तिक, दानिक अदि विषय जोड दिए गए। निष्कर्ष की भाषा में यह कहा जा सकता है कि उत्तराध्ययन में परिवर्तन एव परिवर्धन का कम महावीर-निर्वाण से प्रारम्भ होकर वल्लभी-वाचना के समय तक चलता रहा। रचनाकाल
उत्तराध्ययन का उल्लेख दिगम्बर ग्रंथों में आदर के साथ उल्लिखित है। इससे सार है कि संघभेद होने से पूर्व ही यह एक ग्रंथ के रूप में प्रतिभित के चुका था। अन्यथा दिगम्बर परम्परा में इसका उल्लेरू नहीं मिलता।
दशवकालिक की रचना के बाद यह दशकालिक के बाद पढा जने ला इस बात से स्पष्ट है कि रत्तराभ्ययन की रचना दशकालिक से पतं हो चुकी थी। दशवकालिक के कर्ता शव्यंभवसूरि हैं, जिनका समय वीर-निवण के ७५ वर्ष बाद मना जाता है। इस प्रकार उत्तराध्ययन की प्राचीनता एक ओर महावीर-निर्वाग तक जा पहुंचती है तो दूसरी ओर ऐसे भी उल्लेख हैं, जिससे उत्तराध्ययन के अध्ययनों की परवर्तिता सिद्ध होती है। इस सूत्र में वर्णित जातिगद, दासप्रथाः, यज्ञ एवं तीर्थस्थान आदि के वर्णन प्रान्ता के द्योतक हैं। अध्ययन एवं विषयवस्तु
उत्तराध्ययन में ३६ अध्ययन तथा १६३८ श्लोक हैं। इसके प्रत्येक अध्ययन अपने आप में परिपूर्ण हैं। इनमें आपत्त में भी कोई संबंध परिलक्षित नहीं होता। रूमवायांग में उत्तराध्ययन के जिन ३६ अध्ययनों का नामोल्लेख मिलत है, वे नियुक्ति में उपलब्ध अध्ययनों के नामों से कुछ भिन्न हैं। यहां उत्तराध्यसन उसकी निमुक्ति तथा समवाओ में आए अध्ययनों के नामों क चार्ट प्रस्तुत किया जा रहा है। साथ ही किस अध्ययन पर कितनी निर्मुक्ति-माथाएं लिखी गयी इसका भी संकेत दिया जा रहा है
उत्तराध्ययन नियुक्तिकार समनाओ नियुक्तिगाथाएं १. विन्यश्रुत विनयश्रुत . २. परीषहाविभक्ति परीष्ह
परीषह ३. चतुरंगीय चतुरंगीय चातुरंगीय १४२-१७२/१५ ४.असंस्कृत
असंस्कृत असंस्कृत १७३-९९
१. दसवेआलियं तह उत्तरज्झयणादि भूमिका पृ २४ |