Book Title: Nayamrutam Part 02
Author(s): 
Publisher: Shubhabhilasha Trust

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Page 29
________________ नयामृतम्-२ [मूल] [टीका] उदाहरण दाखवे छे। जेम कोइ पण वनस्पति विना लेंबडो, आंबो न देखे कारण के लेंबडा प्रमुखो वनस्पति जातिथी जुदा नथी। तेम वली बीजूं उदाहरण। तथा जेम हाथमां अंतर्भूत एवी आंगलीयो ते हाथथी जुदी नथी तेम। तात्पर्यार्थ जे के हाथ प्रमुख सामान्य छे आंगलीयो ते विशेष छे, पण एक विना एकनी संज्ञा ठरे नहि माटे एक ज छे ते बे पण। माटे संग्रहनय वस्तुने सामान्यात्मक ज माने छे इति भावार्थ।।६॥७॥ विशेषात्मकमेवार्थं व्यवहारश्च मन्यते। विशेषभिन्न सामान्यमसत् खरविषाणवत्॥८॥ वनस्पतिं गृहाणेति प्रोक्ते गृह्णाति कोऽपि किम्?। विना विशेषान्नाम्रादीस्तन्निरर्थकमेव तत्॥९॥ व्रणपिण्डीपादलेपादिके लोकप्रयोजने। उपयोगो विशेषैः स्यात्सामान्ये न हि कर्हिचित्॥१०॥ व्यवहारश्च =व्यवहारनामा नयः विशेषात्मकं =पर्यायस्वरूपमेवार्थं पदार्थं मन्यते= कक्षीकुरुते। कुतः? जिनोपदेशे विशेषभिन्नं =विशेषात्पृथग्भूतं सामान्यमसत् =नास्ति खरविषाणवद् रासभशृङ्गवत्। तर्हि विशेषमात्र एव पदार्थः॥८॥ एनमेवोदाहरति— यदा केनचिद्वक्त्रा कश्चिदादिष्टः –भो! त्वं वनस्पतिं गृहाण इति प्रोक्ते कथिते सति किं कोऽपि निम्बाम्रादीन् विशेषान् विना गृह्णाति? न कोऽपि गृण्हाति तत्= तस्मात्कारणाद् ग्रहणाभावात् तत्= सामान्यं निरर्थकं =निष्फलमेवेति॥९॥ तथा च व्रणपिण्डीव्रणं मनुष्यादीनां शरीरे प्रहारादि जातक्षतं तस्मै पिण्डीपट्टिकादि करणं तथा पादलेप: पादलेपकरणं तयोर्द्वन्द्वे आदिपदाच्चक्षुरञ्जनादिके लोकानां जनानां प्रयोजनं कार्यं तस्मिन् विशेषैः पर्यायैरुपयोगः साधनं स्याद्भवति सामान्ये सत्तामात्रे सति कर्हिचित्कदाचिदपि न हि कार्यसिद्धिर्भवतीत्यतो विशेष एव वस्तु॥१०॥ [शब्दार्थ) विशेष युक्त एवो ज अर्थ प्रते व्यवहारनय वली माने छे विशेषथी भिन्न एवं सामान्य ते नथी गर्दभना सेंघडाना जेवु॥८॥ वनस्पतिने झाडने ग्रहण कर एम कहे प्रकर्षे ग्रहण करे ते स्यु? ते माटे विना विशेषथी नहि आंबा प्रमुखने ते व्यर्था(नकामुं) ते माटे॥९॥ व्रणपिंडि (पोटिश) पादलेप (मलिम) आदिक एवा लोकना प्रयोजनमां कार्यमा उपयोग जे ते विशेषोए करी थाय छे सामान्ये करी नहि थाय क्याहिं पण॥१०॥ हवे व्यवहार नय तीजो। ते विशेषात्मक एवा अर्थने माने छ। एना मतमां विशेषथी भिन्न एवं सामान्य ते गर्दभना सेंघडा जेवू सर्वथा नथी। उदाहरण दर्शावे छे— जेम कोइ पुरुषने कोइ पुरुषे कडं के - वनस्पतिने ग्रहण कर। कहीने आंबा प्रमुख मंगावेला पण ते आंबादिक विशेषदर्शक शब्दोना कह्या विना केवल वनस्पति केहवा मात्रथी आंबा प्रमुखने लेइ न शक्यो। माटे विशेष विना सामान्य ते निरर्थक छ। बीजं उदाहरण— जेम लोकमां कोइने व्रणपिंडी (नारु प्रमुख रोग उपर बांधवानुं औषध अथवा पोटीश) तथा पादलेप (पगे चोपडवानुं औषध अथवा गोटको पादलिप्ताचार्यजी करता तेवो) [टबार्थ भावार्थ

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