Book Title: Nayamrutam Part 02
Author(s):
Publisher: Shubhabhilasha Trust
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गुजराती गद्यकृति
११५
आडंबरसुं आयो ते वांदनामें हिंसा थइ पिण लाभकारण गिणी तोटो न थयो। बीजो मल्लिनाथ छ मित्र प्रतिबोधवाने पूतलीनो दृष्टांत कह्यो। सो हिंसा तो घणी थई पिण लाभकारण गिणी। इम भाव सुद्ध थकां हिंसा नही लागती।
अथवा केइ इम कहै छै ते अम्हे आपणे थांनके बैठा नमोत्थु णं कहस्युं अमने लाभ थासी। ते खरो पिण भगवतीसूत्र में भगवंतनी वंदनाने अधिकारै तिहां जाय वंदना कीधाना मोटा फल कह्या। तथा निक्षेपाने अधिकारै इम कह्यो जे भाव निक्षेपो एकलो थायै नही नाम, थापना, द्रव्य मिल्याई ज थाइं।
तिणे थापना मानवी अवस्य। जे थापना न माने तेहनें इम कहीजे–जे चित्रांमनी मूरतिने हिंसा परिणांमे फाडै तेहनें हिंसा लागै छै तिम जिनवरने धांने जिनप्रतिमा पूजतां लाभ थाई छै। इम युक्ति करतां अने आगम साखे पिण जिनप्रतिमा जिनसमांन मानवी। माने ते आराधक अने प्रतिमा न माने तिणे थापना निक्षेपो उथाप्यो अने थापना उथापी तिवारै द्रव्य, भाव पिण उथापै छै। तिवारै त्रण निक्षेपा उथाप्या तिवारै सिद्धांत उथाप्यो। तिणे जिन प्रतिमा न मांने ते विराधक छै। एतलै थापना निक्षेपो थाइं।
हिवै द्रव्य निक्षेपो कहै छै। जेहमें नाम पिण होवै आकार थापना गुण पिण होवै अमें लखण होवै पिण आत्मोपयोग तेपणे वरतो न हवै ते न मिलै ते द्रव्यनिक्षेपो जांणवो। एतलै अज्ञानी जीव जीव स्वरूपना उपयोग विना द्रव्य जीव छ। अणुवओगो दव्वं (अनुयोगद्वार-१३) ए अनुयोगद्वारनो वचन छै।
वली कहवो छै पद, अक्षर, मात्रा शुद्ध सिद्धांत वाचतां पूछतां अर्थ करै छै गुरुमुख सद्दहै ते पिण शुद्ध निश्चै सत्ता उलख्यां विना सर्व द्रव्यनिक्षेपैमें छै। जे भाव विना द्रव्य छै ते पुण्यबंधनो कारण छै पिण मोक्षनो कारण नही छै। एतलै जे करणी रूप कष्ट तपस्या करै छै अनै जीव-अजीवनी सत्ता नही ओलखी ते भगवतीसूत्रमें अविरती अपच्चक्खांणी कह्या। तथा जे जे एकली बाह्यकरणी करै छै अमें आपने साधु कहावै छै ते मृषावादी छै। उत्तराध्ययनमें कह्यो छै। न मुणी रण्णवासेणं (उत्तराध्ययनसू.२५-२९) ए वचने नाणेण य मुणी होड़ (उत्तराध्ययनसू.२५-३०) इणे वचनें ज्ञानी ते मुनी छै, अज्ञानी ते मिथ्यात्वी छ।
तथा कोइक गणितानुयोगना नरकदेवताना बोल अथवा यति-श्रावकनो आचार जांणीनें कहै—जे अम्हे ज्ञानी छु ते ज्ञानी नथी, द्रव्य-गुण-पर्याय जांणे ते ज्ञानी कहीजै। उत्तराध्ययनें मोक्षमार्गमें कह्यो छै। अत्र गाथाएयं पंचविहं नाणं दव्वाण य गुणाण या पज्जवाण य सव्वेसिं नाणं णाणीहिं दंसियं॥
(उत्तराध्ययन २६-५) ए पंच वस्तु सत्ताइं जाण्या विना ज्ञानी नही अनें नव तत्त्व ओलखै ते समकिती एहवें ज्ञान दर्शन विना जे कहै अम्हे चारित्रीया छु ते पिण मृषावादी छ। जे कारणे उत्तराध्ययनमे कह्यो छै—
नादंसणिस्स नाणं, नाणेण विना ण हुंति चरणगुणा। (उत्तराध्ययनसू.२८-३०)
ए वचन छै ते कारणे आज ज्ञानहीन केइक क्रियानो आडंबर दिखाडै छै ते ठग छै। तेहनो संग न करणो। ए बाह्य करणी अभव्यने पिण आवै, तिणे ऊपर राचवो नही अने आत्माने स्वरूप ओलख्यां विना सामयक, पडिक्कमण, पच्चक्खाण द्रव्यनिक्षेपैमें पुण्याश्रव छ, संवर नथी। भगवतीसूत्रमें

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