Book Title: Nayamrutam Part 02
Author(s): 
Publisher: Shubhabhilasha Trust

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Page 136
________________ गुजराती गद्यकृति ११३ उपचरित विवहार जे कारण धन, घर, कुटंब परतक्ष आंपांसुं जूदा छै पिण जीव अज्ञानीपणे आपणा करि जांण्या छै ते उपचरित विवहार(५)। छट्ठो अनुपचरित विवहार जे शरीर आदिक परवस्तु छै यद्यपि जीवथी जुदा पिण परिणामिक भाव लोलीपणे एक ठामि ज रह्या छै ते जीव आपणा करि जांणे ते अनुपचरित विवहार जाणवो। एतलै विवहारनय कह्यो। हिवै ऋजुसूत्रनयनो विचार कहै छ। अतीतकाल अनागतकालनी अपेक्षा न करै वर्तमान कालें जे वस्तु जेहवै गुणे परिणांमें वरतै ते वस्तु तेहवै परिणामें मांगे। ए नय परिणामग्राही छै। जे जीव गृहस्थ छै पिण अंतरंग साधु समान परिणाम छै तो ते जीव साधु कहीजै अने जे जीव साधुने वेसे छै पिण मनपरिणाम विषयाभिलाषी सहित छै। जे सदा सर्व वस्तु में एक वर्तमान समय वर्ते छै एतलै जे जीव गये काल अज्ञानी हतो अमें आगलें काल ज्ञानी भावे अज्ञानी थासी ते बहुकालनी अपेक्षा न करै एक वर्तमान समय जे जेहवो तेहनें तेहवो कहै। एक सूक्ष्म ऋजुसूत्र छै(१) अनें बादर मोटका बाह्य परिणाम ग्रहै ते थूल ऋजुसूत्र। एतलै ऋजूसूत्र नय कह्यो। शब्द नय कहै छै जे वस्तु गुणवंत अथवा निर्गुण ते वस्तु ते नाम कही बोलावीयै भाषावर्गणाथी शब्दपणे वचन गोचर थायें ते शब्दनय। जे कारण अरूपी द्रव्य वचनस्युं ग्रह्या जायें नही पिण वचनस्युं कहिवा ते शब्दनय कहीजै। इहां जे शब्दनो जे अरथ हुवै ते पणो ते वस्तुमें पांमीयें तिवारै ते वस्तु शब्द नामै कहीजै। घट जे चेष्टा तेहने करतो ते घट ए शब्द नयमें व्याकरण नीपना अनें बीजा पिण सर्व शब्द लीधा। ते शब्द नयना चार भेद छे—नांम(१), थापना(२), द्रव्य(३), भाव(४)। ए च्यार निक्षेपाना पिण एही ज नाम छ। ते विस्तारस्युं कहै छ। हिवै प्रथम नामनिक्षेपो कहै छ। जे आकार गुण वस्तुनें नामें करी बोलावणो ते नामनिक्षेपो कहीजै। जे लाकडीनो कटको एकलेइ किणेकै जीव कही नाम कह्यो ते नामजीव जाणवो। जिम काली दोरडीने सापनी बुद्धे करीने घाउ करै हणै तेहनें सापनी हिंसा लागै ए नामसर्प थयो। ते वास्तै इम नामतप अथवा नामसिद्ध जिम वड प्रमुखने सिद्धवड इम कही बोलावै छै। णामं आवकहियं (अनुयोगद्वार ७९) ए सूत्र साख छ। __हिवै थापनानिक्षेपो कहै छ। जे किणहीमें जे केहनो आकार देखीने तेहने ते वस्तु कहै एतलै चित्राम अथवा काष्टपाषाणनी मूर्ति तेहने घोडा हाथीनो आकार छै ते घोडा हाथी कहवायै ते थापना जाणवी। ए थापना निक्षेपें सहित होवै। जिम थापनासिद्ध जिनप्रतिमा प्रमुख। इहां थापना सद्भाव पिण होवै असद्भाव पिण होवै। अकृत्रिम नंदीश्वरने विषै जिनप्रतिमा, कृत्रिम इहां जे प्रतिमा ए सर्व थापना जाणवी। जिम चित्रांमनी स्त्री जिहां मांडी होइ तिहां साधु न रहै जे कारण थापना स्त्री छै इम जिनप्रतिमा जिन समांन जाणवी। इहां केइ अज्ञानी जीव कहै—जे थापनामें ज्ञानादिक गुण नथी तिणे मानवी पूजवी नही। तेहने उत्तर दीजै—जे थापनारूप स्त्रीमें स्त्रीना गुण केहवा छै पिण विकारनो कारण थाये छै तो जिनप्रतिमा धांननो कारण छै। अमें जो हिंसा थायें छै तिणे भगवंते दयामें धर्म कह्या छै तिहां कहीजे–जे परदेसी राजा केसीगुरुने वांदिवा बीजै दिन घणै १. =ध्यान

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