Book Title: Nayamrutam Part 02
Author(s): 
Publisher: Shubhabhilasha Trust

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Page 125
________________ १०२ ए नय सर्व ज्ञानमांहि एक श्रुतज्ञानई ज वांछइ । बीजा ज्ञान थकी मुख्यवृत्तिरं तेहवउ प्रायइं परोपकारनउ कारण नथी जाणीनउं श्रुतज्ञान सर्व जीवनई हितूउं कारण छ । तिणि कारणि ऋजुश्रुतनय श्रुतज्ञान बहु बहु करी ग्रहइ । ए ऋजुश्रुतनय जाणवो। नयामृतम् -२ हिवइ शब्दनय कहइ छइ। ऋजुश्रुत नयनी परि ए पुण प्रत्युत्पन्न ज नउ ग्रहणाहार छइ। तो माहोमांहि भेद केहउ? ते कहइ छइ। ऋजुश्रुतनयवादी सामान्यगत अर्थ ग्रहइ । जे पर लिंगभेद तथा वचनभेद कांइं न करइ। जिम त[ट] ए पुरुषलिंग, तटी ए स्त्रीलिंग, तटम् ए नपुंसकलिंग । परं ऋजुसूत्रनय तटनउ अर्थ ग्रह | लिंगनओ विशेष कांई न गणइ अथवा गुरुः एकवचन, गुरवः ए बहुवचन । इहां बहू शब्दई गुरुइज ग्रहिय । परं एकवचन-बहुवचननउ विशेष न गिणइ । हवइ शब्दनयवादी विशेषइं विशेष शब्द ग्रहइ तिणि कारणि शब्दनय कहइवाइ । ए नय शब्दनां लिंगवचनादिक जे भेद छइ ते विशेषई जूजूआ ग्रह । तथा सम्यक् प्रकारि कार्य साधक शब्द बोल । जिम इंद्रना निक्षेपा ४ कह्या। ते किम? नामेंद्र, स्थापना इंद्र, द्रव्येंद्र, भावेंद्र। एहमांहि शब्दनयवादी इम कहइ नाम, स्थापना, द्रव्य ए इंद्र न कहइवाइ। जे भणी इंद्रनउ जे कार्य ते करी न सकइ । इणि कारणि इंद्र न कहीइ। आकाशकुसमवत्। जिम फूलनउ कार्य आकाशकुसुम थकी न थाइ तिम इहां पण जाणवउं । एकभाव इंद्र ते इंद्र कहीइ [जे पुर नामक दैत्यने दारइ ते] पुरंदर कहीइ। इत्यादि इंद्र नाम भाव इंद्रनइ मान । ए शब्दनयनउ विचार। हिवइ समभिरूढनय कहीइ छइ । गाथा— वत्थुओ संकमणं, होइ अवत्थू नए समभिरूढे। वंजणअत्थतदुभए, एवंभूओ विसेसेइ॥ (अनुयोगद्वार - सूत्र १३९) ' समभिरूढ नयनइं मतिइं वस्तु शब्दई पदार्थ इंद्रादिक तेहनउ संक्रमण कहतां अनेरा तदर्थ नामांतर विषइं अवतारिवउं ते अवत्थु कहतां असंभव कहइवाइ । समभिरूढनयवादी इम कहइ — एतलई स्यउ भाव ? जिम इंद्र सौधर्मादि देवलोकनउ स्वामी एक नाम ऊपरि शिष्य पूछइ – भगवन्! इंद्र स्यउं कही ? तिवारइं श्रीगुरु इंद्रना भाव अनेरा पर्याय कही प्रीछवइ छइ । ते किम? इंद्रनई शक्र कही । पुरंदर कही । अनेराइ इंद्रनां नाम जे छइ ते कही प्रीछवइ। परं एतलां नामांतरे करी पदार्थ एक इंद्र लाभ । समभिरूढनय इम न कहइ इंद्र, शक्र, पुरंदर एहना अर्थ अनेरा छइ तो इंद्रनो अर्थ किम प्रकासइ? तिणि कारणि इंद्र जे शक्र कहीइ ते अवस्तु। इंद्र जे पुरंदर कहियइ ते पुण अवस्तु संभवइ नही। यथा 'इदु परमैश्वर्ये' ए इंद्रपदनी धातु । एतलई इंद्र पदनो अर्थ परमैश्वर्य सहित । शक्रनउ अर्थ शक्तिइं करी प्रधान। पुरनाम शत्रु तेहनइं विदारणहार ते पुरंदर। जउ इंद्रनउ अर्थ ते शक्र अनइं पुरंदर सहित किम मिलइ? अनइ शक्र पुरंदर ए इंद्रनइ अर्थि न मिला। एतलई शक्र, इंद्र, पुरंदर ए एकार्थ किम कहइवाइ ? इम अनेरे अर्थि वर्तमान शब्द अनेरा अर्थनइं पर्याय मेलीयइ तओ इंद्रनइ पर्याय घट स्यइ न कहियइ ? इत्यादि समभिरूढ नयना भाव अनेक छइ परं ए वानगीमात्र लिख्या छ । १. जे पर.... नपुंसकलिंग नास्ति को. २. नंदी अणुओगदाराइ, सं. पुण्य वि.म., प्र. महावीरजैन विद्यालय

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