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गुजराती कृति
हवइ आगिला नयनां लक्षण कहइ छइ । गाथा—
सेसाण पि नयाणं, लक्खणमिणमो सुणह वुच्छं ॥
संगहियपिंडियत्थं, संगहवयणं समासओ बिंति ।
वच्चइ विणिच्छियत्थं ववहारो सव्वदव्वेसु ॥ (अनुयोगद्वार - सूत्र १३७ )
जिहां भावनउ अर्थ ते पिंडित संग्रहिया | पिंडित ते स्यउं कही ? जिहां एक जि शब्द ग्रहतां घणा शब्द ग्रहीइ ते पिंडितार्थ एहवउ संग्रहनयनउ वचन तीर्थंकरगणधरादिक बोलइ । ए संग्रहनय एक सामान्य अर्थिइ छइ, न तु विशेषार्थ । जिम मार्ग बोलतां आगलि वृक्षावली देखी गहन स्वरूप जाणी काउं—आगलि वन छ । ए सामान्य वचन ए संग्रहनय कहिय । जिणि कारण वन शब्द कहीतइ जे वनमांहि नानाप्रकार धव, खदिर, पलाश, अंब, निंब, जंबू, कदंब, श्रीताल, तमाल, पुन्नाग, नाग, अशोकादिक वृक्ष तथा शश, शृगाल, हरिण, रोझ, शंबर, सिंह, चित्रादिक अनेक जीव तथा भीलादिकनी अनेक पालि, अनेक गोकुळ, वावि, पुष्करणी, सरोवर, कूपादिक अनेक जलाश्रय संग्रहीइ। परं वचन एक जु— आगलि वन छ । तिणि कारणि संग्रहनय। एतलई संग्रहनय थयउ।
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हवइ व्यवहारनय विचारी छइ । जे सर्व द्रव्यनइ विषइ विगत निश्चय एतलइ स्यउ ? भाव निश्चय ते कहीइ जे तत्त्वदृष्टि पुरुष अनेक अनेक अधिका भाव एक पदार्थनइ आश्रइ जाणइ ते भाव जिहां नथी परलोक प्रसिद्ध एक कोई अर्थ ते विनिश्चयार्थ जाणवउ । एहवउ जे अर्थ सर्व द्रव्यनइ विषइ प्रवर्तइ ते व्यवहारनय जाणवउ । ए नय सामान्य अर्थ न बोलइ। जिम जगमांहि घटपदार्थ छइ ते कहइ द्रव्यव्यवहारइ प्रवर्तइ ? लोकप्रसिद्ध जल आणवानइ काजि, इणिपरि वस्त्र पहरवानइ काजि, स्तंभ घरना आधारनइ काजि, पुस्तक वाचवा भणवानइ काजि इत्यादि लोकप्रसिद्ध एकेको व्यवहार बोलाइ । बीजी परि एकेको पदार्थ अनेक व्यवहारि प्रवर्तइ छइ । एतावता सामान्य नही अनइ निश्चय पण नही। इणि कारणि व्यवहारनय जाणवो ।
अथवा जे जगमांहि घटपटादि वस्तु छइ ते यद्यपि पंचवर्ण, द्विगंध, पंचरस, अष्टस्पर्श सहित छइ। एतलइ स्यउ भाव? जिहां एकवर्ण, एकगंध, एकरस, एकस्पर्श तिहां तत्त्वदृष्टिवं पंचवर्ण हो । दोइ गंध, पंचरस, आठस्पर्श छइ तथापि लोकप्रसिद्धइं जिहां जे नीलादि वर्ण प्रगट दीसइ ते पदार्थ तेहवउ कही । ए व्यवहारनय जाणवो ।
हवइ ऋजुश्रुतनय कहीइ छ ।
पच्चुपन्नगाही, उज्जुसुओ णयविही मुणेयव्वो ।
इच्छइ विसेसियतरं, पच्चुप्पन्नं नओ सद्दो॥ (अनुयोगद्वार - सूत्र १३८)
प्रत्युत्पन्न कहतां वर्तमानकाल तेहनउ साधनहार जे भाव तेहनो ग्रहणहार ऋजुश्रुतनय जाणवउ। अथवा ऋजुसूत्रनय कहीइ ते किम? जे अतीतकाल ते ग्यउ, अनागत काल ते नथी उपनओ तेहनउं ग्रहवउं । ग्रहवउं ते कुटिलभाव। ते बेवइँ परहरी ऋजु कहतां सरल वर्तमानकाल भाव ते सूत्रइं तिणि कारणि ऋजुसूत्रनय कहवाइ।
१. बोहत्थं को. ४. वच्चइ. को.
२. ३. नंदी अणुओगदाराई, सम्पा. पुण्यवि.म., प्रका. महावीर जैन विद्यालय