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नयामतम-२
हिवै विवहारनो अर्थ लिखीये छ। ववहारो वि हु बलवं जं वदड़ केवली वि छउमत्थं। आहाकम्मं भुंजइ सुअववहारं पमाणंतो॥ जड़ जिणमयं पवज्जह ता मा ववहारनिच्छएसुमुअह। ववहारनयच्छेदे तित्थुच्छेओ जओ भणिओ॥
ओहेसु अ उवउत्तो जं किंचि गिण्हड़ य असुद्धं। तं केवली वि भुंजड़ अपमाणं सुयं भवे इअरा॥ जेंणे प्रकारें सकल लोक प्रवर्तइं निवर्तइं तेहने व्यवहार कहिये। ते प्रकार ते वस्तुना पर्याय जाणिवा पिण सामान्य धर्म न जाणिवं। ते किम? जिम संसारमध्ये जल भरवाने काजे जलार्थी पुरुष घट-घटी-शराव-उदंचनादिक भणी प्रवर्तइं छे पिण मृत्पिंडद्रव्य भणी कोई प्रवर्ततुं नथी। व्यवहारनय उपगारी विशेष छे पिण सामान्य नथी। तथा वस्तु पिण तेहि ज जे व्यवहार साधक हुइ। तथा विशेष विना एकाकी सामान्य दीसतुं पिण नथी। निर्विशेषं हि सामान्यं भवेत् शशविषाणवत्। (मीमांसाश्लोककवार्तिक ५.१०)
विशेष विना सामान्य शशविषाणसरी छे ते किम कार्य साधक हुइं ? मरुमरीचिकावद् असद्रूपत्वात्। मरुदेसें जिम मृगतृष्णा देखीनें जलार्थी मृग दोडी दोडी मरे छे पिण जलावाप्ति नथी हुंती तिम सामान्य पिण एहवं असद्रूप छ। तथा जे सद्रूप , तेहखें उपलंभ , पिण असद्रूपनो उपलंभ नथी अने जेहनो उपलंभ नही तेहनी अधिक कल्पना स्या माटें करवी? ते माटें विशेष तेहि ज पदार्थ कहिये घट-पट-मुकुटादिक जाणिवा पिण घटत्व, पटत्वादि न जाणिवा।। इति व्यवहारनय॥
हिवै ऋजुसूत्रनय कहीयै छ। ऋजु कहितां सरल कहिये जे सरलपणे वस्तुनें कहें ते ऋजुसूत्रनय कहियें। ते किम? जिम एक वस्तुने विषै अनन्त पर्याय कहियै छ। विणवा(स्यां) जे पर्याय ते वर्तमाननी अपेक्ष्यांये वक्र छै, सांप्रति भासता नथी ते माटें। तिम अनागत पर्याय हजी उपना नथी तो पिण वर्तमानकालथी वक्र छे। वक्र कहितां प्रतिकूल। प्रतिकूल कहितां ते समयनें भजता नथी। सरल तेहि जे जे पर्याय वर्तमानकाल वर्तइं जें वर्तमान समयने अनुकूल छ। जिम पोतानी गांठे धन वर्तइं छे तेहथी कार्य सिद्धि हुई छे पिण पराया धनथी कोई गरज सरती नथी। एतलै वर्तमान वर्तलै वर्तइं छे जे पोताना पर्याय तेहनेंईज अस्ति रूपें कहै पिण बीजाने न कहैं ऋजुसूत्रनुं ए शब्दार्थ जाणिवू। __तथावली ऋजुसूत्रनय लिंगनो भेद मानें नही शब्दनें वि लिंग त्रणि प्रकारचें , पुलिंग(१) स्त्रीलिंग(२) नपुंसकलिंग(३) ए संसारमांहिं जेतला शब्द छे तेणि त्रिण लिंगे करी बोलीजै छ। ते मध्ये घट, पट, भट, मुकुटादिक शब्द पुल्लिंग वाचक छ। भलो घट छै, भलो पट छै इम अर्थनी ध्वनि ऊपजें हैं। तथा हेला, शाला, मालादिक शब्द स्त्रीलिंग वाचक छ। भली शाला छै, भली माला , इम अर्थ प्रगटै छै। तथा मूल, फल, पत्रादिक शब्द नपुंसकलिंग वाचक छै। भलू फल छै, इम अर्थ थायें। ते निपुण बुद्धिना धणीनें पूछिजो अथवा व्याकरण भणिज्यो जिम खबर पडै। एहवं लिंगभेद यद्यपि भासै छै पिण ऋजुसूत्र नय न मानें। ते कहे छे—जिम कोइक समुद्र, नदी, सरोवर प्रमुखना उपकंठेने तट कहिइ छै ते तट एहै लिंगै छे अर्थभेद पिण भिन्न भिन्न कहें छै, पिण वर्तमान समयकालमाहें भेद न कह्यो अने ऋजुसूत्र तो वर्तमानकालने ज कहै छै, बीजा कोई भेदंतरनें कहितो नथी। बीजा घणाइ भेद छै पिण वर्तमान समयमांहि तो कोई भेद नथी। ए परमार्थ जोतां लिंगभेद न घटै ऋजुसूत्रने विषै।