Book Title: Nayamrutam Part 02
Author(s): 
Publisher: Shubhabhilasha Trust

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Page 44
________________ संस्कृत कृति वर्तमानकाललक्षण वर्तमानकालना लक्षणे करी थानार भावि थानार यत् जे वस्तु वस्तु तत् तेने सूत्रयति ग्रहण करे प्रतिपादयति प्रतिपादन करे आश्रयति आश्रय करे इति एम ऋजु ऋजु सूत्रः सूत्रनय तस्य तेना एव ज अर्थ अर्थनी क्रियाकारितया क्रियाना करवापणावडे करीने वस्तुत्व वस्तुपणाना लक्षण लक्षण योगात् योगथी इति एम अयं आ नय अपि पण सामान्यविशेष सामान्य अने विशेष ए उभय बे युक्त आत्मकस्य एवा वस्तुनः वस्तुना सामान्य सामान्यना अंश विभागना परित्यागेन तजवावडे करीने विशेष विशेषना अंशस्य विभागना एव ज समाश्रयणात् सम्यक् प्रकारे आश्रय करवाथी माटे शौद्धोदनिवत् बौद्धनी परे न नहि सम्यग् सम्यक्त्वी दृष्टि समकीति कारण हेतुरूप भूत भूत मुख्यद्रव्य द्रव्यना अनभ्युपगमेन न आश्रय करवा वडे करीने तत् ते विषे आश्रित विशेषस्य रहेलो एवा विशेषना एव ज भावात् भावथी इति एमा४ शब्दनयस्वरूपं त्विदम्। तद्यथा - शब्दद्वारेणैवात्यर्थप्रतीत्याभ्युपगमाल्लिङ्गवचनसाधनोपग्रहकालभेदाभिहितं वस्तु भिन्नमेवेच्छति। तत्र लिङ्गभेदाभिहितं वस्त्वन्यदेव भवति। तद्यथा पुष्यस्तारका नक्षत्रम्। एवं सङ्ख्याभिन्नं जलमयो वर्षाऋतुः। साधनभेदस्त्वयं एहि मन्ये रथेन यास्यसि यातस्ते पिता। अस्यायमर्थः - एवं त्वं मन्यसे यथाहं रथेन यास्यामीत्यत्र मध्यमपुरुषयोर्व्यत्ययः। उपग्रहस्तु परस्मैपदात्मनेपदयोर्व्यत्ययः। तद्यथा - तिष्ठति प्रतिष्ठते रमते उपरमतीत्यादि। कालभेदस्त्वग्निष्टोमयाजी पुत्रोऽस्य भविता। अस्यायमर्थोऽग्निष्टोमयाजी अग्निष्टोमेनेष्टवान् भूते णिनिर्भवितेति भविष्यदनद्यतने लुट्। तत्रायमर्थः णिनि प्रत्ययो भवितेत्यस्य सम्बन्धाद् भूतकालतां परित्यज्य भविष्यत्कालतां प्रतिपद्यते तेनेदमुक्तं भवत्येवम्भूतोऽस्य पुत्रो भविष्यति योऽग्निष्टोमेन यक्षति। तदेवम्भूतं व्यव हारनयशब्दनयो नेच्छति। लिङ्गाधभिन्नास्तु पर्यायाः अनेकविषयत्वे नेच्छति। तद्यथा घटः कुम्भः इन्द्रः पुरन्दर इत्यादि। अयमर्थव्यञ्जनपर्यायोभयरूपस्य वस्तुनो व्यञ्जनपर्यायस्यैव समाश्रयणान्मिथ्यादृष्टिरिति।५ शब्द नय शब्द नयनं स्वरूपं स्वरूप त तो इदं आ तत ते यथा जिम छे तिम के छे शब्द शब्दना द्वारेण द्वारे करीने एव ज अत्यर्थप्रतीत्य अति अर्थनी प्रतीति ते प्रतिज करीने अर्थात् परमार्थनी प्रतिजे करिने अभ्युपगमात् आश्रय करवाथी प्रतिपादन करवाथी लिंगवचन लिंग ते पुंलिग स्त्रीलिंगनपुंसकलिंग वचन ते एक वचन द्विवचन बहुवचन विभक्तियोनी साधन साधन सिद्ध करवू ते उपग्रह अनुकूल यथायोग्य काल त्रणकाल भेद भेदोये करी अभिहितं कहेलुं ते लिंग-वचन-साधन-उपग्रह-कालोना भेदोये कहेलुं एवं वस्तु पदार्थने भिन्नं जुएं एव ज इच्छति आसरे छ। तत्र तिहां लिङ्गभेदाभिहितं लिंगना भेदे करीने कहेलुं जे वस्तु पदार्थ अन्यत् बीजू जुदं एव ज भवति थाय छे तत् ते यथा जिम दर्शावे छे पुष्य पुष्यपुल्लिंगना बले तारका तारका स्त्रीलिंगबले नक्षत्रं नक्षत्र नपुंसकलिंगबले एवं ए प्रकारे सङ्ख्या संख्यामांथी भिन्नं जुदं नक्षत्र नपुंसकलिंगे तारका स्त्रीलिंगे सामान्ये नक्षत्रोनां नाम छे पण पुष्य नक्षत्र पुलिंगना बलेथी सत्तावीश नक्षत्रनी संख्यामांथी आठमुं जु, थाय छे ते लिंगभेदे कहेलुं जाणवू। वर्षा तथा ऋतु ए स्त्रीपुरुष लिंगे छे पण जलमय ए विशेषण पुलिंगी होवाथी वर्षाकाल एम प्रतीति थाय छ। जलमय जलयुक्त एवो वर्षा वर्षा ऋतु ऋतु। साधनभेद साधनभेद तु तो अयं आ प्रकारे जेम एहि आव्य मन्ये मायूँ छु जाणुं छु हुं के रथेन रथ वडे करीने यास्यसि जाईस

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