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गुजराती पद्यकृति
कहीइं। पुरं दारयतीति पुरन्दरः। इन्दति परमैश्वर्यं प्राप्नोतीति इन्द्रः। इम सर्व नामनी व्युत्पत्ति भिन्न छई। व्याकरण भण्ये खबरि पडें शब्दज्ञान वांछै। तेव्हने व्याकरण प्रमुख भण्यां जोइइं। श्रीअनुयोगद्वारसूत्रे बत्तीस दोष वर्णया छइ। तिहां ए परमारथ चाल्यो छ। जे शब्दशास्त्र, न्यायशास्त्र भण्या विना सिद्धांत वांचैं जुठं सद्दई छइ ते माटैं। यदुक्तं सम्मतौ
चरणकरणप्पहाणा, ससमयपरसमयमुक्कवावारा। चरणकरणस्स सारं निच्छयसुद्धं ण याणंति॥
तथा निपुणबुद्धीइं ए नय चित्तमां धरवो। जेतला एक शब्द छै, ते सर्व भिन्न भिन्न पर्यायनें कहेंइ छई। तथा ते सर्वनें विर्षे एकार्थवाचकता मानीइं तो अतिप्रसंग तथा संकरदोष लागई। अतिप्रसंग ते स्युं कहिइं? हवइं अतिप्रसंगनो अर्थ कहें छे। विजातीयेषु शब्देषु एकार्थप्रसञ्जनमतिप्रसङ्गः। विजाति शब्दने विषई एक अर्थ मांनीइं तो सर्व शब्दमात्रनो एकज अर्थ हुइ जाइ। परस्परभिन्नार्थानामेकत्रावस्थानं सङ्करः। एम अनेक दोष लागई। स्यादवादवादीने पुछी लेज्यो इति समभिरूढनयः ए छट्ठी, सातमी गाथानो अर्था।६॥७॥ मूल]
शकन क्रिया करतो हई शक्र, इंदनक्रिय(या) थी इंद्र। तदभावइं शक्रादि न मानें, एवंभूत नयेंद्र रे॥भवि०॥२८॥ (२.८) जो कारिज अणकरतो ताहरें, एवंभूत अणुसरवो तो।
व्यपदेश घटादिकनो पिण, न घटइं पटनइ करवो रे॥भवि०॥२९॥ (२.९) [बाला] हवें एवंभूत नय कहइ छ। जे शब्द जेहथी क्रियानें कहें छे ते क्रियानें भजतो हुंइ। तिवारें जेहनें नामें करी बोलावींइ तेहनें एवंभूतनय कहियें। ते किम? जिम एक घट शब्द छै। तेहनो अर्थ चेष्टादि क्रिया लक्षण हैं। चेष्टा ते क्रिया कहियें। घट चेष्टायामिति वचनात्। काइ एक नवयुवति जल भरवा गई छइ। निर्मल जलस्युं कुंभ भर्यो छै, सुंदर इंढोवणि नीचें धरी । सर्व दिशिने विषै जलख्यु कुंभ भर्यो आई कह्यो छ। ते घट मस्तकनइ विर्षे धरीने निर्भय साहंकार थकी लीलाइ बांह लोडावती पणघटे चालिं पावें छई। चालतां नरनें मंगलिक सुचती थकी इत्यादिक क्रिया सहित हुइ तिवारै घट कहिइ, पिण एहवी क्रियाए (र)हित खाली घटनें घट न कहिए। इम शक्रपरंदरादिक शब्द पिण जाणवा। जे जे शब्दनो जेहवो जेहवो अर्थ छडं ते ते अर्थनें भलै तिवारें तेहनें तिणे नामिं करि कहै। शक्र तेहनें ज कहीइं जे शक्तिनें फोरवतो हुई, पुर नामा दैत्यनइं मारें तिवारहे पुरंदर इम अर्थनें न भजइं तिवारें शक्रादिक न कहिथें। ए समभिरूढ थकी एवंभूत नय शुद्ध छैइ।
ते एवंभूत नय तथा ए सात नय अवधारण सहित हुई ते दुर्णय जाणवा। अवधारणं ते जे एक कोइ नय हाथि लीधो 3 तेहनें ज मानें बीजा नय सर्वत्र थापी नाखई तिवारे ते दुर्नयवादी कहिइं। अवधारण रहित हुई तिवारें सुनय कहीयें। एक कोइ नयनें कहैं तिवारें बीजा नयनें विषं उदास भाव राखें पिण जडमूल खी नहि तिवारै सुनय कहिइं। ए सात नय संयुक्त वीतरागमत स्याद्वाद कहिएं जिहां एकांतवाद तिहां जिनमत नही। तथा बौद्ध १ क्षणिकवादी छइ। नैयायिक कर्तावादि छइ २। सांख्य ३ सप्तति प्रत्यियवादि(सत्प्रतिपत्ति)। मीमांसक कर्मवादी छइ ४। चार्वाक ५ नास्तिक ए पांच मत जांणवां। एहना विस्तार श्रीहरिभद्रसूरिकृत षट्दर्शनसमुच्चयनी टीकामां छई। ए आठमी, नोमी गाथानो अर्थ॥८॥९॥