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नयामृतम्-२
भावः। ए नैगम नयनुं मत कहें छ। देशनो प्रदेश न कहीइं। 'दासेन में' ए न्याय माटें। देशनिं पर संबद्ध माटें पोतानो प्रदेश न कहेंवाई। ते माटें पांच अस्तिकायनो ज प्रदेश होइं। इंम संग्रह नय कहें छई। हवें व्यवहार नय कहें छई। पांचनो तो(जो) कहीइं तो पांचनो साधारण होइं जेम पांचनु धन तिम ए नथी, ए तो प्रत्येकि संबंध ठे माटें पांच प्रकारनो प्रदेश इति भावः। पांच प्रकारि प्रदेश होइं इम व्यवहार कहें छे॥४.८॥४४॥ प्रत्येकि पणविधनी होई प्रसंजना रे, इति ऋजुसूत्र कहेय।
ते माटें पंचनो भजनाइं भाखवो रे, हवई शबद वदेय॥ भ०॥४.९॥(४५) [टबार्थ हवें ऋजुसूत्र नय कहें छे। जो पंचविध प्रदेश कहीइं तो पंचास्तिकायना प्रदेश माटे पांचेनिं पंचविध
एहवी प्रसक्ति थाई। इम ऋजुसूत्र कहई छई। ते माटें पांच अस्तिकायनो स्यात् पद योगिं कहेंवो। 'स्याद् धर्मास्तिकायस्य', 'स्याद् अधर्मास्तिकायस्य' ए प्रकारिं कहेंवो। हवें शब्दनय कहें छइं॥४.९॥४५॥ तेहनइं विषइं तथा तेह ज तेहनो प्रदेशको रे, अन्यथा न होइं निरदेश।
समभिरूढ वदई होइ सप्तमी भेदिका रे, तेह ज तेहनो प्रदेश॥ भ०॥४.१०॥(४६) [टबार्थतेहनें विर्षे धर्मास्तिकायरूप धर्मास्तिकायनो प्रदेश। इंम पांचेंनिं जाणवू। नहीं तर धर्मास्तिकायनो
प्रदेश अधर्मास्तिकायनिं विषे होइ इत्यादिक प्रसंजना होई। हवें समभिरूढ कहें छई। सप्तमी भेदिं होइं। 'कुंडे बदर' इत्यादिकने विषई कुंडथी बदर भिन्न जणाई तिम इहां सप्तमीइं धर्मास्तिकायादिक थकी धर्मास्तिकायादिकनो प्रदेश भिन्न जणाइं ते माटें धर्मास्तिकायादिक तेहज धर्मास्तिकायनो
प्रदेश इम कहें ॥४.१०॥४६॥ [मु.]
एवंभूत मतिं सवि द्रव्य अखंडका रे, नही देशादि प्रकार।
इमं दृष्टांत घटादिक द्रव्यिं भावतां रे. होइं सुमति विस्तार॥भ०॥४.११॥(४७) [टबार्थ हवें एवंभूत कहें छे। देशी ते देश इंम कर्मधारय कीधे वृक्षपादप इत्यादिकनी परिं एकार्थता थाइं ते
माटें देशीमात्र अथवा देशमात्र अखंड वस्तु मानवं, पणि देश प्रदेश कल्पना नहीं। ते माटें एहनें मतिं कर्मधारय पणि युक्त नही इति भावः। सर्वद्रव्य अखंडित छई। देश-प्रदेश कल्पना ते व्यर्थ। ए त्रिण दृष्टांत कह्या ते घटादिक द्रव्ये पणि भावतां थका नयनें विषं बुद्धि प्रकास थाइं॥४.११॥(४७)
॥इति सप्तनयदृष्टांतदर्शनम्॥
१. हवइं प्रदेश दृष्टांत कहें छ। धर्म१ अधर्म२ आकाश३ पुद्गल४ जीव५ ए पंचास्तिकाया तथा छठो देश जे खंधनो अवयव प्रदेश ते स्कंधसंबद्ध ज निर्विभाज्य भाग, अनि
पांच अस्तिकायनो प्रदेश प्रसिद्ध ज छ। देशनो अवयव प्रदेश छे ते माटें एह तथा जे बंधनो अवयव रूप ए छतो प्रदेश होई। ए नैगम नयनुं मत कहें छ। मु. २. दासेन मे खर: क्रीतो दासोऽपि मे खरोऽपि मे। ३. प्रदेश अधिक मु.