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गुजराती पद्यकृति
कहइं शबदवादी वेदि रे, लिंगनिं वयणनि भेदि रे।
भेद रे, मानइं जो तुं अरथनो रे॥११.३॥(१२१) [टबार्थ हवें तिहां युक्ति कहें छ। समभिरूढ एहवं कहें छे— शबदनयवादी मानें जें लिंग-वचननें भेदिं जो तुं
अर्थ भेद मानें छइं॥११.३॥(१२१) [मु.] संज्ञांतरि तो केम रे, मानइं नहीं भेद एम रे।
तेम रे, इहां पणि ध्वनि भिन्नता रे॥११.४॥(१२२) [टबार्थ] तो संज्ञाभेदि किम अर्थभेद नहीं मानइं? लिंग-वचननें भेदिं जिम शबद भेद छे तो संज्ञाभेदि शब्दे भेद
ज छई।।११.४॥(१२२) ते माटइं संज्ञाभेदि रे, अरथनो मानो भेद रे।
उछेद रे, अन्यथा होइं नियतिनो रे॥११.५॥(१२३) टबार्थ ते माटें संज्ञाभेदि अरथनो भेद मानो। इंम न मानीइं तो उच्छेद थाइं नियतिनो। इंम जो न मानीइं तो
घटपटादिक जे भिन्न भिन्न शब्द तेहनो अर्थ पणि भिन्न भिन्न एहवी नियतिनो उछेद थाइं। घट, कलश इंहा शब्दभेदिं अर्थ एक मानीइं तो घट, पट सबदें पणि अर्थ एक ज मनाइं इति
भावः॥११.५॥(१२३)॥ [मु.] घट कुंभ कुट इत्यादि रे, थंभादि परि अन्य वादि रे।
नादि रे, भिन्न प्रवृत्तिनिमित्तथी रे॥११.६॥(१२४) [टबार्थ] घट, कुंभ, कुट इत्यादिक शब्द थंभादिकनी परि अन्य अर्थना वाचक छ। शब्द प्रवृत्तिनिमित्त जूदा
माटे। घट शबद थकी स्थंभ शबद भिन्न अर्थनो वाचक छ। प्रवृत्तिनिमित्त बेहु शब्दे जूदा माटें। घट शब्दे घटत्व स्थंभ शब्दें स्थंभत्व प्रवृत्तिनिमित्त छ। तिम घट शब्द अनि कलश शब्दें पणि
प्रवृत्तिनिमित्त भिन्न छइं इति भावः॥११.६॥(१२४) [मु.] घट कहीइं चेष्टायोगि रे, कुट शबद कोटिल्य योगि रे।
लोगि रे, कुंभ कुस्थिति पूरवइं रे॥११.७॥(१२५) [टबार्थ हवें पर्याय शब्दनि भिन्न शब्द प्रवृत्ति देखाडे छ। घट शब्दनो अर्थ चेष्टारूप, कुट शब्द ते
कुटिलपणाने सबंधिं प्रवर्ते, कुटिल आकारवंत माटें कुट इति भावः, कुंभ शब्द ते कु कहेंता पृथवी
तेहनें विषं स्थिति पूरवा माटइं प्रवर्तइ॥११.७॥(१२५) [म.] घटाकारथी अभिन्न रे, घट करण किरिया विन्न रे।
भिन्न रे, होइं ते घट करमथी ए॥११.८॥(१२६) [टबार्थ] घटना करनारथी अभिन्न ज छइं घट करवानी क्रिया प्रसिद्धपणइं। अनि तेह ज क्रिया भिन्न छइं घट
रूप कर्मथी। जल आहरणादिक चेष्टावंत ते घट इति भावः॥११.८॥(१२६)