Book Title: Nayamrutam Part 02
Author(s): 
Publisher: Shubhabhilasha Trust

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Page 43
________________ नयामृतम्-२ सत्तारूपं सत्तारूप ते एवं वस्तु पदार्थ असौ ए नय आ नय आसरे छे। अभ्युपगछति आश्रय करे छे प्रतिपादन करे छ। सत्तात: सत्ताथी व्यतिरिक्तस्य भिन्न जुदा पदार्थ- अवस्तुत्वं अपदार्थपणुं खरविषाणस्य गर्दभना सेंगडानी खरने सेंगडं न होय तेम इव। स ते च वलि सङग्रहः संग्रहनय सामान्य सामान्य विशेषात्मकस्य सामान्य अने विशेषयुक्त वस्तुनः वस्तुनो सामान्यांशस्य एव सामान्य अंशनें एव ज आश्रयणात् आसरवाथी मिथ्यादृष्टिः मिथ्यात्वी कहिये तत् ते मताश्रितसाङ्ख्यवत् मतने आश्रय करवाला सांख्यमतनी परे।२ व्यवहारनयस्य तु स्वरूपमिदम्। तद्यथा- यथा लोकग्राह्यमेव वस्तु यथा च शुष्कतार्किकैः स्वाभिप्रायकृतलक्षणानुगतं तथाभूतं वस्तु न भवत्येव। न हि प्रतिलक्षणमर्थानामात्मभेदो भवति। किं तर्हि? यथा यथा लोकेन विशिष्ठभूयिष्टतयार्थक्रियाकारि वस्तु व्यवह्रियते तथैव तद्वस्त्वित्याबालगोपालाङ्गनादिप्रसिद्धत्वाद् वस्तुस्वरूपस्य। इत्ययमप्युत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तस्य वस्तुनोऽनभ्युपगमात् मिथ्यादृष्टिस्तथाविधरथ्यापुरुषवदिति।३ व्यवहारनयस्य व्यवहारनयनुं तु तो स्वरूपं स्वरूप इदं आ तत् ते यथा जिम बतावे छ। यथा लोकग्राह्यं जेम लोकोये ग्रहण करवा योग्य एव ज वस्तु वस्तु ग्रहे यथा जिम च वली शुष्क सुका तार्किकैः स्वाभिप्रायकृतलक्षणानुगतं नैयायिकियोये पोताना अभिप्रायन करेलुं लक्षण ते कोरा तर्कवादियोये पूर्वक कल्पनाये करेलु तथाभूतं तेवा प्रकारचें वस्तु पदार्थ न भवति न होय एव ज न हि नहि जे माटे प्रतिलक्षणं लक्षण लक्षण प्रते प्रत्येक लक्षणे अर्थानां अर्थोनो आत्मभेद पोतानो विभाग भवति होये किं स्युं तर्हि तारे यथा जिम यथा जिम लोकेन लोके विशिष्ट विशेषसहित एवो भूयिष्ठतया बहुधापणाये करी अर्थक्रियाकारि अर्थनि क्रियाने करनार वस्तु वस्तु जे ते व्यवह्रियते व्यवहारमा ग्रहण करे तथा तिम एव ज तत् ते वस्तु वस्तु इति एम आ सर्वे बाल बालक गोपाल गोवाल अङ्गना अने स्त्री आदि प्रमुखोने प्रसिद्धत्वात् प्रसिद्ध माटेथी वस्तु वस्तुना स्वरूपस्य स्वरूपनो इति एम अयं आ नय अपि पण उत्पाद उपजq व्यय नाशपणुं ध्रौव्य स्थिरस्वभावपणुं युक्तस्य ते सहित एवा वस्तुनः वस्तुना अनभ्युपगमात् ग्रहण करवाथी माटे मिथ्यादृष्टिः मिथ्यात्वी जे ते तथाविधरथ्यापुरुषवत् ते प्रकारनो मार्गमां जानार पुरुष परे जेम अजांण्यो मार्गि कोइ लोक बतावे ते मार्गे जाय पण पोते न जाणे तेम इति।३ ऋजुसूत्रमतं त्विदम्। ऋजु प्रगुणं तत्त्वविनष्टानुप्तन्नतयातीतानागतचक्रपरित्यागेन वर्तमानकाललक्षणभावि यद्वस्तु तत्सूत्रयति प्रतिपादयत्याश्रयतीति ऋजुसूत्रः। तस्यैवार्थक्रियाकारितया वस्तुत्वलक्षणयोगादित्ययमपि सामान्य विशेषोभयात्मकस्य वस्तुनः सामान्यांशपरित्यागेन विशेषांशस्यैव समाश्रयणाच्छौद्धोदनिवन्न सम्यग्दृष्टिः कारणभूतद्रव्यानभ्युपगमेन तदाश्रितविशेषस्यैव भावादिति।४ ऋजुसूत्रमतं ऋजुसूत्रनयनुं मत तु तो इदं आप्रकार, ऋजु ऋजु ते प्रगुणं सरल सुधुं तत्त्व तत्त्वे करी विनष्ट विनाश थये अनुत्पन्नतया तानु न उपजवापणुं अतीत अतीतकाल अनागत अनागतकाल चक्ररूप चक्राकार भ्रमणपरित्यागेन भ्रमणना त्यागवडे करीने अर्थात् अतीत अने अनागत ए बे कालना तजवा वडे करीने

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