Book Title: Nandi Sutra Tika
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ** नदौ टी. 306 選罪業聽器業業業兼差兼張能器器类灘紫紫养業 नेमक्षरतिन चलतीत्यक्षरतानं तद्धिजीव स्वभाव्यादनुपयोगेपितत्वोनप्रयवेत यद्यपि च सर्वज्ञानम विशेषेणाक्षरं प्राप्रोति तथापीच श्रुतज्ञानस्य प्रता वादक्षरं श्रुतज्ञानमेव द्रष्टव्यं न शेषं इत्यं भूतभावाक्षरकारणंचाकारादिवर्मा जातमतस्तदप्य पचारादक्षरमुच्यते ततश्चाक्षरंच तत् श्रुतश्च श्रुतज्ञानञ्च अक्षरथुतंभाव युतमित्यर्थःतचलवानरं श्रुतंवेदितव्यं तथाअक्षरात्मक मकारादिवर्यात्मकथुतमक्षरथुतं द्रव्यश्चतमित्यर्थःतसंचाचरं व्यंजनातरश्चद्रष्टव्यं अकिंततज्ञानरं पचरस्थाकारादे: संस्थानातति संस्थानाकारस्तथाहि संज्ञायतेऽनयेतिसंचानमेतनिधनंतत्कारणमचारसंज्ञाक्षरसंज्ञायाश्चनिवन्धन मारुति विशेष बाकृति विशेष प्राकृतिविशेष एवनामकरणात् व्यवहरणाच्च ततोऽक्षरस्थ पट्टिकादौ संस्थापितस्य संस्थानाकृति संज्ञाचरमुच्यते तच्च हंप मातंतंजहासन्नक्वरं वंजणक्खरंलविक्सरसेकिंतंसन्नक्खरं 3 अक्सरस्मसंहाणागिइसन्नक्सरंजत्थणं वंभौलिवीपव येजे इमपांचभरत पांचएरवततथा घटद्रव्यनो विचारकहीट स अर्थ करीने हादशांगी तेहनो अंतसहितले तेजेणंच भरत पांचेऐरवरततेजे तिहांद्वादशां गीचंगनो विरको पणियाइहे सपज्जवसीकहीये / अअर्थकरीहादशांगीनो अंतकदेव नथाइतेहने अपज्जवसीसत्रकहीये 10 ग गमकहतां जेसारिखो पाठके तेगमिक सूबदृष्टी हादशांगीमध्ये के शेषमित्रमबछे 11 प.जेहवानेविषे सरिखापाठ नहीनेषनागामिक मूबतेकालिक मूत्रप्रमुख 12 म. ग्यारे अंगते पाचारांगादिक ने चने चंगप्रविष्टक सुत्रकही ये तथा कालिक सुवने कहीजे अजे पावस्थकदस विकालिकादिक मुत्राने अनंगप्रविष्ट कही ये 14 हिये इहां एडीज थोलानो विस्तारकहेछे से तेथ पिये किं०कुण अथ दिवे किंशिष्यप्रश्नपूछे भगवान पक्षरप्रनपके कहेछे 2 ते विण प्रकारयः श्रीतीर्थंकरगणधर परुप्या तं तेकहे तिम कहेछ म जे अक्षरना पाकारजाणे एजीव खभाव जेउपयोगसंसद्ध अक्षरचरते भावथुतते अक्षरनोस 業縣器器業器梁端器类器端業調器装张杀器需諾张 For Private and Personal Use Only

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