Book Title: Nandi Sutra Tika
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Page 382
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नंदी टी. 283 装需养黑猪業業茶業法器端端帶带来業業職業涨涨業 * देशेन संचार उच्यते यस्य प्रामिणाऽस्ति विद्यते देशासदर्थपर्यालोचनं अपोहानिश्चयः मार्गणा अन्वय धर्मान्ध षण रूपागवेषणा व्यतिरेक धर्म स्वरूप पर्यालोचन चिंता कथमिदं भूतं कथं चेदं सम्प्रति कतैव्य कथं चैतद्भविष्यतीति पर्यालोचनं विमर्थनं विमर्श: इदमित्यमेवघटते इत्यं वातद्भुतं इत्यमेव वा तद्भावीति यथावस्थित वस्तु स्वरूपनिर्णयः स प्राणोणामिति वाक्यालंकारे संजीतिलभ्यते स च गर्भव्युत्क्रांतिक पुरुषादिरौपपातिकच देवादिर्मन: पर्याप्ति युक्तोविन्ने यस्त यै पत्रिकालविषयचिन्ता विमर्यादि सम्भवात् पाच च भाष्यकृत् इदादीहकालिगी कालिगित्तिमन्त्राजयापि दीपि संभरदूभूयमिम चिंतेदू * यकिहणुकायव्यं कालियसन्नत्ति उतंजस्ममईसोयलोमणुजोगो खंधणंतेषेत्तुं सन्नदूतबहिसंपन्बो एषच प्रायः सर्वमप्यर्थं स्कटरूपमुपलभते तथाहि यथाच क्षु भान् प्रदीपादिप्रकाशेन स्फु टमर्थमुपलभते तथैधापि मनोलब्धिसंपन्नो मनोद्रव्यावष्टम्भसमुत्यविमर्शवशत: पूर्वापरातु संधानेन यथावस्थितस्फुटमर्थमुपल भते यस्य पुनर्नास्ति ईहा अपोहामार्गणागवेषणाचिन्ताविमर्शः सो असंज्ञीति लभ्यते सच सन्म छिमपंचिन्द्रियविकलेन्द्रियादिविज्ञेयः स हि स्वल्प स्वल्पतरमनाल ब्धिसम्पन्न बादस्फुटमस्फटतरमयं जानाति तथाहि संजिपंचेन्द्रियापेक्षया सन्मच्छिमपंचेन्द्रियोस्क टमय जानाति नतोष्टमार्ट चतुरिन्द्रि यस्ततोप्य स्फुटतरं वीन्द्रियः ततोप्य कुटतमं हीन्द्रियस्ततोप्यस्फुटतम मेकेन्द्रियस्तस्य प्रायोमनोद्रव्यसंभवात् केवलमव्यक्कमेव किंचिदतीचाल्पतरं मनोद्रष्टव्य' यवशादाहारादि संज्ञा अव्यक्तरूपाः प्रादुर्घति से त्तमित्यादि सोयंकालिक्युपदेशेन संज्ञा से किंतमित्यादिअयशोयं हेतूपदेशेन संज्ञाहेत: कारण निमि अपोहामग्गणा गवसणाचिंतावोमंसासेणंअसमोतिलम्भद् सेतंकालिश्रोवएसेणं सेकिंतं हेऊवएरुणं जमणं अत्थित्र तेएतलावाना जेपर्पोक्तवोलग्रसनीने लनलाभ तेअसं नौमूत्रसे तेएका कालसंग्या उउपदेसकह्यौ तीर्थकरेसे तेकुंण चेतुस्त्वनोउ उपदेस्यो तेगुरु *HNAHANEKARKAKKARKHERWEINEHEYENEVERENEWS भाषा For Private and Personal Use Only

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