Book Title: Nandi Sutra Tika
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Page 415
________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नंदी टी० 職業兼端需器装器装號器养難離 चार: अणिगुचियवलविर उपरकमई जोजहत्तमाउत्तो जंजई यनहाथाम नायवो वीरियायारो बायारणमित्यादि पाचारोणमिति वाक्यालंकारपरी सापरमितातं तं प्रज्ञापक पाठक वाधिकृत्याद्यन्तोपलब्धिः अथवा उत्मपिणीमेब सपिगौं वाप्रतीत्यपरीता वा द्रष्टव्या:कासावित्याह वाचना नामसवस्था * यस्य वा प्रदानं यदि पुन: सामान्यतः प्रबाहमधिकृत्यचिंत्यते तदा अनन्तातथाचाह चूर्णिकृत् सुत्तम्म अस्थम्म वापयाणं वायणा सा परित्ता अतान भव * ति पाडूचंतावलं भगिउ अहवालमणिगी मुसिप्पणीकालं पदुच्चपरित्तानीयाणा गयसव्वईच पड़च्च अणंता इति तथासंख्येयानि अनुयोगद्वाराणि उप * मादीनि तानि ह्यध्ययनमध्ययन प्रतिवर्तते अध्ययनानि च संख्येयानीति कृत्वा तथा संख्येया बेटावेढो नामच्छन्दो विशेषः तथासंख्य याः नोकाः सुप्र तोता: तथासंख्य यानिर्वतयः तथासंख्य था: प्रतिपत्तयः प्रतिपत्तयो नाम द्रव्यादि पदार्थाभ्युपगमा: प्रतिमाभिग्रहविशेषा वातास्तत्र निबहाः संख्य या: * आहच चर्णिकृत्दव्वाई पत्यभवगमापडिमादभिग्गविसेसावापडिवत्तीउतेसमातोसमुत्पडिवुवासंखेज्जत्तिसेगमित्यादिम आचारोणमितिवाक्यालंकारे अंगार्थतया अंगार्थ वेन अर्थग्रहणं पर लोकचिन्तायां सूत्रादर्थस्यगरीय स्वख्यापनार्थ अथवा मृत्वार्थोभयरूप आचारइति ख्यापनार्थं प्रथममङ्ग एकाएँ खिज्जाओ निजुत्तोश्रो संखिज्जाअोपडिबत्तोत्रो सेणं अंगठ्ठयाए पढमे अंगेदोसुयखंधा पणवीसं अज्झयणापंचा सं० संख्याता अर्थनीपंक्तिबंधछे से तेज आचारङ्गना अंगार्थपणे अंगलक्षणवस्तुपणे प. प्रथमते पहिलाअंगना दो० वेश्रुतखंधले 50 पचीस अध्य य नके ते के हासत्यपरिणा१ लोगविजयसी उसिणजसमतऽवती 5 भूयः विमोहर माहाप रिमा हागि उपधानथुत खंधपिडे सगा सज्जार दूरि या३ भासजायंव४ वच५ पाएमा उग्ग हपडिमा सतकीधा 14 भावणा१५ विमुक्तिया 16 द्वितीययुत खंधना१५ एसय 25 नाणवाप० पच्चासौउद 黑業諾諾器諾器默默繼諾戰諜罪罪罪謝罪業需器樂器柔器 For Private and Personal Use Only

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