Book Title: Nandi Sutra Tika
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Page 507
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir भाषा 柴柴柴柴柴柴業業業器業辦業 HMMMARREMEME समाणे कस्मइकोहाइभा अणुजाणिज्जा सेतं लोइयाभावाणुस्मा सेकिंतं कुप्पावणिया भावाणुणा कुप्यावणियाभावाणु या सेजहानामएकेड् आयरिएवा जावकस्वविकोहाइभावं अणुजाणिज्जासेतं कुष्यावणिया भावाणुन्नासेकिंतं लोगुत्त रियाभावाणुस्मा लोगुत्तरियामावाणमा सेजहानामए आयरिएवा जावकस्मिकारण तुझेसमाणे कालोचियनाणाई गुणाजोगिणोविणियस्मखमाइप्पहाणस सुसीलस्मसिस्मस्म तिविहेण तिकरणविसुद्धणं भावेणं बायारंवासुयगडवाठाणं * साधुने विनीत के ते विनीत साधने विनीत जख क्षमादिकमे प० प्रधान गुणवन्तने सु० सुविहित ने मला पाचारवन्तने ति० विविधि 2 ति त्रिकरण * करी वि० शुहिभा० सूत्रोक्त भावछे ते रहस्य अर्थ पूर्वक के ते भाव ते कुथर भावते कहे के पा० आचारंगनाभावः सु० सुयगण्डागना भाव: जाण्यावत् ३.४५३८५१०११दि दृष्टि वादते 12 सुमंग 12 अङ्ग मध्ये म० ए सर्वद० द्रव्यना गु० गुण भने प० पर्याय करी संयुक्त ते गुणतेपील' वर्ण पर्याय ने छोटा मोटा भामरणादिक तिम सर्व नाणवा स सर्व अनुयोग ने व्याख्याननी विधिनोपदेसः प० आदेश थापे से ते तं० एलो लोकोत्तर भावानुमानो विचार जाणवो के केतला काले प० प्रवत्यों म० अनुज्ञानो विचार ते गुरु उत्तर कहे के प श्रीयादिनाथे पु० पुरिमताल मगर थकी प० प्रवत्यों ते उ० ऋषभ सेन गणधर प्रतें श्रीपादिनाथे कही ये मा अनुना१७० उवमती र न० नमती 3 ना नामनी 4 40 स्थापना 5 मा० भाव प. प्रभावना प्रचारतं तदुभव चित ! म मर्यादा न्याय 11 म० माग 120 कल्प 13 संग्रह १४संबर१५नि निर्जरा १५डि स्थिति करण 17 जी० जीवहि१८५०पद 1150 प्रवर चे पदपूरणभणी २०ततिमज वी०एवीस अनुचाना नाम जाणवा इति श्रीनन्दीसूत्वं समाप्त:१नन्दौसूत्र कथानक सर्वग्रन्थ WIKEKIWAKANIKIMAWEINENEWHENIMEHEHENNAIKHENNA For Private and Personal Use Only

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