Book Title: Nandi Sutra Tika
Author(s):
Publisher:
View full book text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नंदी टी० 諜諜諜米器器業界諾米諾带带张諾米米米米器器茉業 त्यादि समवायोण यहा समवायेणमिति वाकालंकारे जीवाः समाधीयं ते समिति सम्यग्यथावस्थिततया श्रीयं ते बुद्यास्पीकियंते अथवा जीवाः सम स्यं ते कुप्ररूपणाभ्यः सम कृष्यसम्यगप्ररूपणायां प्रविष्यन्ते शेषमानिगमनं निगदसिद्ध नवरमेकादिकानामेकोत्तराणां शतस्थानकयावत् विवईि तानां भावाना प्ररूपणा पाख्यायने अयमनभावार्थः एकसंख्यायां हिसंख्यायां यावत् शतसंख्यायां ये ये भावायथा 2 यत्न यत्नांतर्भवन्ति तेर तत्रर तयार ति अजौवा समासिज्जति जौवाजौवसमासिज्जति ससमएसमासिज्जति परसमएसमासिज्जति ससमयपरसमयस मासिज्जति लोएसमासिज्ज अलोए समासिज्ज लोयालोए समासिज्ज समवाएणं एगाइयाणं एगुत्तरियाणं जाणत्रो प० नामस्वरुपने कहिये करी प्ररुपो दं० घणाभेदने देखाडवे करी देखाड्यो ने० हेतदृष्टांते करीने शिष्यने देखाडे उ० निश्चलपणेथापेउपदेसे / करी / ए० इम जोहागांग एहयोछे एइमना० ते ग्यांन करीने एम वि० ते भरण्या थकी एकदूम चरण सत्तरी 70 क० करण सत्तरी प्रमुख कह्याछे *प सामान्य पणे प्ररूपणे अर्थ कच्या सामान्यपणे अर्थ कल्याछे से ते त°ए ठाठाणांग सूत्र मध्ये भाव कया से ते किं कुण स० समवायांग ते भगवंत उत्तर कहेछे गोतम स जीवनो जेहने विषे जीते समयंगे करी जीवने जाणे तेजीव अ अजीव पदार्थ तेधर्मास्तिकायादिक ते समवायंगे * करी अनौवनो जी जीव पने म०निर्णय कीधोछे लो०पंचास्तिकायमयलोकके म०पंचास्तिकाय रहित चलोकनो समवायांगने विषे लोलोक पने पलो. कएवेहुनो समवायंगने विषे ससमयपोतानासिद्धांत तेजिनमत नासास्त्र निर्णय काके पल्पर समय तेपरमत ते शास्त्रभारतादिक से शास्त्रमा निर्णय कह्याले म० सिद्धांतनो भने प. भारवादिकनो निर्णय कहाः म सकल ए बोलनी गादिले एहया एकार्थनी केतका एक: ए० एम वे निणच्यार यावत् * 業养業素养業業業茶業業张業 WARIHARXXKNKI भाघा For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512