Book Title: Nandanvan Kalpataru 2001 00 SrNo 06
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 10
________________ श्री शान्तिनाथजिनस्तवनम् सस्तवनानुवादः शान्तिजिनेशः सत्यः स्वामी शान्तिकर: कलिकाले जिनवर ! त्वं मम मनसि त्वं मम हृदये ध्यायाम्यखिले काले जिनवर !..... दर्शनमाप्तं भ्रमता भवाब्धौ आशां पूरय काले जिनवर !..... ज्योतिर्विमलं राजति हृदयं ग्लौरुदितोऽम्बरमाले जिनवर !..... मम हृदयं तव चरणे लीनं मीनवदिह कीलाले जिनवर !..... देवः शान्तीश्वरसदृशो नहि स्वर्गे भुवि पाताले जिनवर !..... अनुवादकः -विजयशीलचन्द्रसूरिः શ્રીજિનરંગ-કવિકૃત શાંતિનાથ-સ્તવના શાન્તિ જિનેશ્વર સાચો સાહિબ, શાન્તિકરણ ઇણ કલિમેં હો જિનજી, તું મેરા મનમેં તું મેરા દિલમેં ध्यान ५३ ५८. ५८ साउन, तुं भे२॥ मन तुं भे२. हिममें.... मम ममता में हरिश पायो, म॥२॥ पूरी में पस हो..... निर्भत न्योत वहन. ५२. सोडे, निस्यो न्यु यं. ७६समें डो..... भेरी मन तुम साथै सानो, मीन से युं ०४९में हो..... 'निरं' हे प्रभु न्तिानेश्वर, हीही हेव ससमें हो...... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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