Book Title: Nadi Darpan
Author(s): Krushnalal Dattaram Mathur
Publisher: Gangavishnu Krushnadas

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीशंवन्दे। श्रीनिकुञ्जविहारिणे नमः। अथ नाडीदर्पणप्रारम्भः। मङ्गलाचरणम् । श्रीमन्तं जगदीश्वरं गदगदाधारश्च धन्वन्तरिमम्बां श्रीजगदम्बिकाप्रतिकृति श्रीकृष्णलालाभिधम् । तातं कृष्णपरावतारमहिमं नत्वा मुहुः संयतः श्रीकृष्णाघिसरोरुहद्वयसुधाधारामिलिन्दायितः॥१॥ श्रीमन्माथुरमण्डलाभिजननः श्रीदत्तरामाभिधो दृष्ट्वा तन्त्रसमूहमूहविधयाऽऽलोड्य स्वयं यत्नतः। बालानां सुखहेतवे मतिमतामानन्दसंप्राप्तये नाडीदर्पणनामधेयकमिमं ग्रन्थंकरोम्यादरात् ॥२॥ युग्मम्। अर्थ-श्रीमान् जगदीश्वर रोग और आरोग्यके आधार ऐसे श्रीधन्वंतरि भगवान् तथा जगन्माता ( लक्ष्मी) के तुल्य रमा नामक अपनी माताको तथा कृष्णका परावतार ऐसे श्रीकृष्णलाल (कन्हैयालाल ) नामक अपने पिताको वारंवार यत्नपूर्वक नमस्कारकर श्रीकृष्णचरणकमलयुगलामृतधाराको पानकरता भ्रमर और श्रीमधुपुरीमंडल अथवा माथुराद्विज ( चोवे ) नको मंडल कहिये समूह तामें निवास जाकों, अथवा जन्म जाको ऐसा जो दत्तराम संज्ञक में सो अनेक शास्त्रसमूहको देख और स्वयंविधिपूर्वक यत्नसैं मथनकर बालकोंके सुखकेलिये और पंडितोंके आनन्दकी प्राप्तीकेअर्थ इस नाडीदर्पण नामक ग्रंथको परमआदरसैं करताहूं । यहग्रंथ यथानाम तथा गुणोंमेंभी है अर्थात् जैसे दर्पणसे इसप्राणीके संपूर्ण गुणदोष प्रकटहोतेहै उसीप्रकार इसग्रंथसैं नाडियोंके संपूर्ण गुणदोष उत्तम रीतिसै प्रगटहोतेहै ॥ १ ॥ २ ॥ For Private and Personal Use Only

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