Book Title: Nadi Darpan
Author(s): Krushnalal Dattaram Mathur
Publisher: Gangavishnu Krushnadas

View full book text
Previous | Next

Page 40
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आयुर्वेदोक्तनाडीपरीक्षा नित्यं स्थानात्स्खलति पुनरप्यङ्गुलिं संस्पृशेद्रा। भावैरवं बहुविधविधैः सन्निपातादसाध्या ॥६॥ अर्थ-जो नाडी कभी प्रखरतारहित मंदमंद गमन करे, कभी स्खलित भावसैं कभी व्याकुल व्याकुलवत् ( जैसे त्रासित मनुष्य चलताहै ) कभी ठहर ठहरके चले और जो संपूर्ण रूपसे लुप्तहोजाय अथवा बहुत सूक्ष्म वहे अर्थात् यह प्रतीत नहोय कि यह नाडी चलेहै या नहीं चले और जो नित्यस्थान अर्थात् अंगुष्ठमूलको परित्यागकरदे, इसीप्रकार कुछकालमें फिर अपने स्थानमें प्रगटहोय ऊंगलियोंको आघातकरे, ऐसे अनेक प्रकारके भावोंकरके नाडीको मृत्युकी कारण जाननी ॥ ६१ ॥ महादाहेऽपि शीतत्वं शीतत्वे तापिता शिरा। नानाविधगतिर्यस्य तस्य मृत्युर्न संशयः ॥ ६२ ॥ अर्थ-जिस प्राणीके देहमें अत्यंत ताप होय परंतु नाडी शीतल होय, एवं देह अत्यंत शीतल होय और नाडी उष्ण प्रतीतहो, तथा जिसनाडीकी अनेकप्रकारकी गति होय उसरोगीकी निश्चय मृत्यु होय, इस श्लोकमें महाशब्द पित्तकृत दाहके निवारणार्थ है ॥ ६२ ॥ त्रिदोषे स्पन्दते नाडी मृत्युकालेऽपि निश्चला ॥ ६३॥ अर्थ-संनिपातावस्थामें मृत्युकालमें भी नाडी सामान्य भावसें चलती है क्योंकी अतीसारादि रोगोंमें हाथपैर में स्वेदादिक करनेसें नाडीका तडफना प्रतीत होता है ॥ ६३ ॥ पूर्व पित्तगति प्रभञ्जनगति श्चेष्माणमाविभ्रतीम् । स्वस्थानभ्रमणं मुहुर्विदधतीं चक्रादिरूढामिव । तीव्रत्वं दधती कलापिगतिका सूक्ष्मत्वमातन्वतीम् । नो साध्यां धमनीं वदन्ति सुधियो नाडीगतिज्ञानिनः ॥६॥ अर्थ-प्रथम पित्तगतिमैं चले ( अर्थात् प्रथम वातगति चलना चाहिये सो त्याग दे यह विपरीत क्रम दिखाया) फिर वातगति और फिर कफकी गतिसैं' चले तथा अपने स्थानको छोड वारंवार अनेक प्रकारसैं चक्र (चाक ) पर बैठ चाकफेरीके सदृश भ्रमणकरे, कभी तीव्रवेगसें चले और कभी मोरकी गतिके समान १ भीमत्वंदधतीं कदाचिदपि वा इति पाठांतर । For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108