Book Title: Nadi Darpan
Author(s): Krushnalal Dattaram Mathur
Publisher: Gangavishnu Krushnadas

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Page 62
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यूनानीमतानुसारनाडीपरीक्षा इतिशा कम्पपर्यायस्तद्विशिष्टा तु या भवेत् । मुर्त्तइशूनाम सा ज्ञेया सफासौदाविकारयुक् ॥ १५ ॥ अर्थ- कंपकी फारसी इतिशा कहते है उसके समान जो नाडी हो उसको इस नाडी कहते है यह सफर (पित्त) और सौदा दोनोंके मिश्रितावस्था में होती है ॥ ११ ॥ मुतिला पूर्ति तूद्दिष्टाऽसृजोस्यां मुस्तिली तु सा । तमः कफादधोगाया मुन्खफिज् सा प्रकीर्त्तिता ॥ १६ ॥ अर्थ- परिपूर्णको फारसी में मुमतिला कहते हैं, अतएव जिस नाडींसें रुधिरकी परिपूर्णता प्रतीत हो उस नाडीकी गतिको मुतली कहते है जी नाडी तमोगुण या कफसें अधोभागमें गमन करे उसको मुमुखफिजू नाडी कहते है ॥ १६ ॥ उर्ध्वमुत्पुत्य या गच्छेत्किचिन्मायुप्रकोपतः । शाहक्बुलन्द सा ख्याता धमनी संपरीक्षकैः ॥ १७ ॥ ४९ अर्थ- जो नाडी पित्तके प्रकोप सें उछलकर ऊपरको गमनकरे उसको नाडीके ज्ञाता वैद्य शाहबुलन्द नामक कहते है ॥ १७ ॥ चतुरङ्गुलिसंस्थानादपि दीर्घा तवीलसा । दराज इति पर्यायस्तस्या एव निपातितः ॥ १८॥ अर्थ- जो नाडी चारअंगुल से भी अधिक लंबीहो उसको तवील ऐसा कहते है और उसी नाडीका नामान्तर दराज है || १८ || परिमाणान्यूनरूपा साकसीर समीरिता । अमीक निम्नगा या च अरीज आयती स्मृता ॥ १९ ॥ अर्थ - जितना नाडीका परिमाण कहाँ है यदि उस्सें न्यूनही उसको कसीर कहते है और अधोगामिनी नाडीको अमीक कहते है और लंबी नाडीको अरीज कहा है ॥ १९ ॥ यथा गतिस्तु दोषाणां धत्ते प्राज्यत्वहीनते । गलवे कसूर अरकात तारतम्येन निर्दिशेत् ॥ २० ॥ For Private and Personal Use Only अर्थ- दोषोंके यथागति अनुसार नाडीको बली और निर्बली जानना इनकेवली निर्बली आदि नाडियों को गलवे कसूर और अरक्लातके तारतम्यसे कहे ॥ २० ॥ ७

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