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नाडी प्रकाश ) ल्लोमाकांत श्व का मुकाः॥१४॥ टीका-जिसने मदरा पिया होय और जिसका मन चंचल होयओ रजिसको मल मूत्रादि त्यागिने की इच्छा होय और लोभी होय और काम करि के पीडितहोयरोसा बेटा नाड़ी देखने में असम र्थ होता है।
नाडीअयोग्यरोगी मद्यस्मातस्य मुक्तस्य तथा तैला चना हिनः॥क्ष तृपयाँ तस्य सुतस्य नाडी
सम्यकन वुध्यते॥१४॥ टीका-जिसने नत्काल स्नान किया होय वो भोजन किया होय थवा तेल मर्दन कराया हो अथवा भूख तथा प्यास करिक पीडत होय अथवा सोताहोयरोसे रोगी की नादी अच्छी तरह नहि देख ने में आती ॥ १४॥
नाडी देखने योग्यरोगी त्यक्त मूत्र पुरी पस्यसरखामोनस्य रोगिया। अंत जीनु करस्यापिन
डीसम्यक परीशयेत्॥१५॥ टीका-जो मनुय्य मन्न सूत्र का त्यागन करके बैठा होय ता होय
और दोनों जानू के बीच में हाथ किये होयोसेरोगी की नाडीम नी भाति से देखना ।। १५ ।।
स्ती पुर्षनाडीभेद
-ananesamand
• सुख सचे
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