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(नाडी प्रकाशी ईय द्विना मित मये बितता गुलिंच वाले निगृध कर मामि पिनो जनस्य ॥पुसोप सच्य मपि सव्य करेगा प. श्ये नाड्या चशश्वदप सव्य करां
गुली॥२०॥ पिति समीरण मथोहि कफंक्रमेण घ्र गुष्ट मूलत इति प्रव दुर्ति वैद्याः। नायोस्तु वास मप सव्य करेंगधीरः संगृह्य सव्य करको गुलि मिस्त थेवः
॥२९॥ टीका- रोगी पुर्ष के दहिने हाथ को सीधी अंगुली करिकें । । और थोडी नवाय के अपने वारें हाथ से पकड़ कर नाड़ी के विय अंगूठे की जड से लेकर अपने दाहिने हाथ की तीन अंगुलियों अर्थात् तर्जनी १ मध्यम अनामिका ३दन तीनों को रख कर कम से देखे तर्जनी के नीचे पित्त मध्यमा के नीचे वायु और अनामिका के नीचे कफ को देखना ।। __ ओर स्त्री का वाम हस्त इसी कमसे देवना॥
अन्यच पुंसो दक्षिण हस्तस्य स्तिया बाम पर रस्यत् ॥ अंगुष्ट मूलगा नाडी परीक्षेत
भिपम्वर ॥ २२॥ टीका-पुरुष के दाहिने हाथ की और स्त्री के वारे साथ की । और अंगूठे के मूल में नाही की परीक्षा करनी योग्य है ॥ २२॥.
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