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(नाडी प्रकाश ११) नाड़ी वक गति सर्पवद्वे गवतरा।। मुख विकसित यस्य तस्य मृत्यु
नसंशयः॥ २६॥ टीका। जिस रोगी मनुष्य की नाडी टेडी चले मोर सर्प केसे घेरे वाली होय और उस रोगी मनुष्य का मुख खिल जाय तिस रोगी की निस्संदेह मृत्य जाननी॥२६॥
Romamar
चाता द्वक गतिधते पिता दत्य गामिनी ॥ कफान्मन्द गति या
सन्नि यातादति दुता॥ २७॥ टीका॥वात की साडी टेढी चलती है पित्त की कूदती हुई चल ती है और कफ से मंद मंद गति चलती है तथा सन्निपात से। अति शीघ्र नाडी चलती है ।। २ ।
वक्र मुत्लत्य चलत धमनी वातपि ततः॥ वहे.<के च मंदं च वात
श्लेष्माधि के त्वतः॥२८॥ टीका॥तथा वात और पित सो टेढी ओर दौड़ती है और वात कफाधिक से टेडी और मंद चलती है ॥२८॥
इट्सत्यं मंद चलति नाडी पितक फेधिके॥कामात क्रोधाद्वेग वहां
क्षीरा चिंता भवत्युता ॥२॥ टीका॥और कफ पित की नाडी में द ओर कूदती चलती है का म के वेग होने से ओर क्रोध से शीघ्र चलती है चिंता ओर भयसे
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