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(नाडी प्रकाश २४०
अन्यच लध्वी ब हतिदीनाने तया वेग वती मता॥सुखितस्य स्थिरा ज्ञेया तथा
बलवती स्मृताः॥ टीका- जिस मनुष्य के अग्नि दीप्त है उस मनुष्य की नाड़ी हल की और शीघ्र यानी जल्दी चलती है मोर आरोग्य मनुष्य की नाड़ी स्थिर और बलवान होती है और भूरखे। की चपल और भोजन करे की स्थिर चलती है।
विशू चिकाइभिभूते चनाडिकाभेक संक्रमा॥प्रमेहे चोप देश चं ग्रंथी र
पाथरा स्मृताः॥ टीका-विशू चिका रोग में नाड़ी मेंडक की गति चला करती है और प्रमेह वाले मनुष्य की और उपदंश वाले मनुष्य की नाड़ी यानी मातशक वाले की नाडी ग्रंथीरूप होती है।
अन्यच भूता वेशषु तस्यापि नष्ट शकस्यना डिका ॥ विदोष गमना चापि सूक्ष्मा
च पिन मृत्यु दा॥ टीका- जिस मनुष्य की देह में भूतका आवेश हुन्मा होय। तिस की मोर धातु क्षीशा वाले मनुष्य की नाड़ी विदोष गति भी चलती है और इन रोग वाले मनुष्यों की नाड़ी सूक्ष्म ग स्ति यानी मन्द मन्द भी चलती है तो भी ये नाही मृत्यु दायक नहिं है॥७॥
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