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(नाडीप्रकाश २२)
होती है खटाई खाने से किंचित उद्यम और मेंडक की गति चलती है। और कडवे भोजन करने से भ्रमर कीसी चाल चलती है ॥ ६१ ॥
अन्यच
स्वस्था नही नाशो के च हिमा कां ते चाने गदा : ॥ भवन्ति निश्वला ना ड्यो न किचतत्र वभयम् ॥ ६२ ॥ टीका । शोक में नाड़ी की गति स्थिर होती है ऐसे ही शीत से ना डी की गति स्थिर होती है उसे साध्य कहते हैं ॥ ६२ ॥ पुष्टि स्मैल गुड़ा हारे माये चल गुडा, कृतिः ॥ क्षीरो स्तिमित वेगाच मधुरे हंस गामिनी ॥ ६३ ॥
टीका || तेल और गुड के खाने से नाडी पुष्ट होती है और उड़ द के बने हुए भोजन के खाने से लकूट के आकार नाडी होती है दूध पीनेसे मंद गति होती है और मीठे भोजन करने से हंस की गति नाडी चलती है ॥ ६३ ॥
मार्तडात
मैथुनां तेभवे च्छाघा सरला पिच नाडिका ॥ श्राकेश्र्व कदलै श्वेवरक्त पुरो वसा भवेत् ॥ ६४ ॥
टीका। जिस मनुष्य ने मैथुन कर्म किया होय उस पुरुष की ना डी शीघ्र और सरल चलती है मोर मला जीशी में नतुपरी की किं चित् २ चलती है ॥ ६४ ॥
प्रदरे रक्त पीते च श्वेते ग्रन्थि वदच्छे
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