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(नाडी प्रकाश २५)
प्रथ प्रसाध्य नाडी लक्षण
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शीघा नाड़ी मलो पेता मध्यान्हे ग्नि समो ज्वरः ॥ दिनेकं जीविते त स्य द्वितीये न्हि ग्निये तसाः ॥ ७९ ॥ टीका- जिस रोगी मनुष्य की नाडी मल युक्त होय और मध्या न्द्र समय में प्रग्नि समान ज्वर होग ऐसा रोगी एक दिन जीवे दूसरे दिन मृत्यु होय ॥
गुष्टमूलेतो वा ध्वं गुले यदि ना डिका || प्रहराद्धीद्ध हि मृत्यु जानीया च्वं विचक्षणः ॥ ७२ ॥
टीका- प्रगूठे की जड से दो अंगुल हटके नाडी चलती हो ये तो वो रोगी मधे पहर पीछे मृत्यु होय ॥
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अन्यच
तृप्यते चरो नाड़ी करे नैव बि दृश्यते ॥ मुखं विलसितं यस्य जी वितं तस्य दुर्लभम् ॥ ७३ ॥ टीका- जिस रोगी के पग की नाही चलती होय और हाथ की नाडी नहिं चलती होय और मुख रोगी का फैल रहा होय. तो ऐसे रोगी का जीना कठिन जानो ॥ ७३ ॥