Book Title: Nadi Darpan
Author(s): Krushnalal Dattaram Mathur
Publisher: Gangavishnu Krushnadas

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Page 100
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - (नाडी प्रकाश) निः॥क्षत काशे तथा राजयक्ष्मागि ग्रंथरुपिणी॥६५॥ टीका।जिन स्त्रियों के प्रदर रोग होय उन की नाडी की पहिचान। लिखते हैं कि लाल वर्गाकुं प्रदर में पीरे वर्ग के में स्वेत वर्ग केमे नाडी ग्रंथ रूप चलती है तैसेही क्षतरोग वाले की तेसेही कासरो गवाले की तैसेही क्षयी रोग वालेकी नाडीभीग्रंथि रूप चलती है॥६५॥ तथाच मंदाग्ने क्षीण धातोश्व नाडी मन्द तराभवेत् ॥असक पुर्गाभवत्को मागुर्वी सामागरीयसी॥६६॥ टीका॥ मंदाग्नि वाले मनुष्य की ओर धातुक्षीणा वाले कीनाडी अति धीरी अर्थात बहुत मंद मंद चन्नती है और रक्त विकार वाले मनुष्य कीनाड़ी किंचित् गरमसीहोय पत्थर के समान भारीचल ती है और पाम संयुक्त पुरुष की नाडी महिष के समान चालचल नीहै॥६६॥ प्रन्यच अजीर्णो तुम वेन्नाड़ी कठिना परि तोजड़ा । पूक्का जीर्णा पुष्टि हीना मंद मंद प्रवर्तते॥६॥ टीका॥जिस मनुष्य को अजीर्ण रोग होय उस मनुष्य की नाडीक ठिन मोर जडवत होयतीहै और पक्काजीर्ण वाले मनुष्यकीनाडी पुष्टी हीन और मंद गति से चलती है ॥६॥ - - - For Private and Personal Use Only

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