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(नाडी प्रकाश- २७) निश्वल चलती होय वो रोगी छ पहर पीछे मरेगा ।। ७७ ॥
वातस्थाने चया ती वावात पित गदोद्भवा ॥मंदा वात कफोन्मि
यात केशः नामिकामतल॥ टीका॥जो नाडी मध्यमा अंगुली के नीचे जो वात स्थान है त हां तीव गति चले तो वा नाडी को कफ वान की जानो।
कास्थाने चया तीब्रा कफ पित गदो दवा ॥वका लेष्म मरु न्मि
श्रात केशः नामि का तले॥७९॥ टीका॥ जो नाडी अनामिका के नीचे कफ के स्थान में तीव्र गति चलती होय उस नाडी को काफ पित की नाडी कहते हैं। और जो वह नाडी वक गति चलै तो कफ वात की नाडी जानों
अन्यच पित स्थाने चया तीव्रा पित वातो द्रवाचसा ॥मंदापित कफा तंक
संभवा तर्ज नीतले ॥८॥ टीका।जो नाडी तर्जनी अंगुली के नीचे पित के स्थान में वक गति से चले तो उस नाडी को वात पित की नाडी कहते हैं। और जो वो नाड़ी मंद गति चले तो उसे कफ पित की जान ले ना ॥१॥
प्रन्यच
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