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(नाडीप्रकाश२७) व्याकुल व्याकुल चलती होय और ठहर ठहर के प्रति सूक्ष समोर निरंतर स्थान को छोड़ कर फिरभी अंगुली को छुवे ऐसे अनेक लक्षण होय तो वो नाडी सति पात की असा ध्य है।
अर्थवेद्यबिनोदात् स्वस्थान विच्युतानाडी यदा बहित वानवा ॥ज्वालाच हदये तीव्रातदा
ज्वाला वथि स्थिति ॥५६॥ टीका-जिस रोगी की नाही अपने स्थान को छोड़ केक भी चले कभी न चले और हृदय में ज्वाला का अति पगि होयतो जब तक ज्वाला रहेगी तब तक वह रोगी जीवेगा।
अनिघंटरत्नाकरे शिरायस्यसूक्ष्मा तिशीतान्वितावा सरोगी नजीवेत्य यत्नेःकदाचित् ॥व लद्वित्रिरूपा त्रिदोषान्विता वासरोगी
यमस्यालये शीघ्रगता:॥५॥ टीका-निस रोगी की नाडी अति मंद चले मोर शीघ्र करिके युक्त हो वो रोगी यम पुर को जावे चाहे जैसा वेद्य लोग यत्न क रे तोभी नवचै और जिस रोगी की नाडी त्रिदोष युक्त दो तीन प्रकार की चाल चलती होय वो रोगी यम राज के घर शीघ्र तथा वहुत जल्दी पहुंचेगा।
अन्यच
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