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(नाडी प्रकाश९४) कातले ॥याभवत्साहि विज्ञेयाकफ
वातसमुद्भवा ॥ ३७॥ टीका जोनाडी क्षणाक्षणा में वक और मंद मंद गति से मध्य मा और अनामिके नीचे प्रगट होय उस नाडी को वात कफ कीमि थित कहते हैं ॥ ३७॥
क्षण मंदा क्षो तीब्राऽनामिका त जनीतले ॥स्फुटास्यात्साधराज्ञया
कफापित्त समुद्रवः॥३८॥ टीका जो नाडी क्षण में तीन गति चलै और क्षणा में मंद गति चले और अनामिका और तर्जनी के नीचे प्रगट होय उसे कफ पित मिश्रित नाही वोलते है॥३८॥
प्रन्यच नाडीधत्ते मरु कोपेजलोका सर्प. यो गति॥कलिंग काक मेडूक गति, पितस्य को पतः॥हंस परवत गति
धते श्लेष्मःप्रको पतः॥ ३८॥ टीका वायुके कोय वालीनाडी जोक तथा सर्प कीसी टेोदी चा लचलती है और पित की नाडी कुलंग और काक आर्थात् कौरो की | सी तथा मेडक कीसीचाल चलती है और कफ के वेगसे नाडी हंस।। और कबूतर कीसी चाल चलती है ॥३॥
प्रन्युच सर्प जलो कादिगतिवदन्ति हिवुधा · प्रसंजने नाडी।पिचकाकलाव
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