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(नाडी प्रकाश ९१) सपादि गति का नाड़ी का कादि गति का तथा ॥ वात पितामयोन्मश्रांप्र
वदन्ति भिष ग्वरा ॥ १३ ॥ टाका-जिस रोगी की नाडी कभी सर्प गति चले और कभी का ग गति चलै तेस को वैद्य लोग वात पित की मित्रत नाड़ी जाने
दंद शूक गतिं नाडी कदाचि ईस गामि नी॥कफ वाताभयो मिश्री प्रवदंति
मिषग्वरा ॥ ३४॥ टीका-जोगाडी कभी सर्प की गति चले मोर कभी हंस गति चले उसे श्रेष्ट वैद्य कफ वात मिश्रित नाड़ी कहते हैं॥ ३४ ॥
मण्ड कादि गतिं नाड़ी कदाचि दम गा भिनी।कफपितामया मिश्रा प्रबद
ति मिष ग्वरा॥ ३५॥ टीका-जोनाडी कदी मेडक की गति और कभी हंस की गति से चले उसको वैद्य कफ पित्त की नाडी कहते है ॥ ३५॥
अन्यच क्षो वका क्षणे तीव्रा मध्यमा तर्जनी तले ॥ स्फुटा भवितास नाडी वातपि
त्त गदा द्रवः॥३६॥ टीका-जो नाड़ी क्षणा में वक गति प्रर्थात् दंदी चले और क्षणा तीव्र गतिसे चले और तर्जनी और मध्यमा के नीचे प्र कट होय उसे वात पित्त रोग की नाडी जानो ॥ ३६॥ | फुटा वका चमदाचमध्यमाऽनिमि
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