Book Title: Nadi Darpan
Author(s): Krushnalal Dattaram Mathur
Publisher: Gangavishnu Krushnadas

View full book text
Previous | Next

Page 85
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - (नाडी प्रकाश) मस्या से वापि रत्नवत्॥ टीका-अव खी पुरुष की नाडी का भेद कहते हे खी के वाम अंग में मोर पुरुष के दक्षिण अंगमें वैद्य साक्षात अपने प्र नु सेव करिकें और अभ्यास करके जानता है जैसे जोहरीरत्नों की परीक्षा करता हे तैसेही रोगी की परीक्षा करे॥ नाड़ीस्पर्शनवि० ईप द्विना मितकर विततो गुलीयम् प्रा ह प्रसार्य रहिते परि पीडिनेन ॥ पंगुष्ट मूल परि पश्चिम भागमध्ये नाडी प्रभा तसमये प्रथमं परिक्षेत्॥ टीका-अव नाड़ी देखने की विध कहते हैं वैद्य को चाहिये कि रोगी पुरुष के दहिने हाथ की सीधी अंगुली करके सोर थोडी नवाय के और एसे न पकड़े जिस्से रोगी को दुःख मालूम होय ओर अंगठा की नड में नाडी को प्रात काल के समय प्रथम देखें। प्रन्यच वारत्रये परी क्षेतघ्रत्वा ।धत्वा विमु. व्यच ॥ विमर्यवहधा वुध्या ततो राग विनि दिशिते॥ टीका वैद्य को चाहिये कि रोगी की नाडी पर अपने हाथ की अंगुलियों को तीन बार धरधर कर उठाय ले और अच्छी तर हसे विचार कर रोग को कहे। amerammarginamainamutnaseenasmeer mem eme For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108