Book Title: Nadi Darpan
Author(s): Krushnalal Dattaram Mathur
Publisher: Gangavishnu Krushnadas

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Page 83
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - - ( नाडी प्रकाश नाड्या मूत्रस्य निहायालक्षयो निविदते॥मारय त्यावेजतूनस वद्यान यशालभेत् ॥१९॥ टीका-नाडी की ओर मृग की और जीभ की जो वैद्यालोग परीक्षा नहिं जानते हैं वह वैद्य मनुष्यों को जल्दी मार डालते हैं और यश कोनाहि पाते हैं। प्रथनाडीज्ञान योग्य बैद्य स्थिर चितो निरो गश्वसुखासीनः प्रसन्नधीः॥ नाड़ी ज्ञान समर्थःस्वा दत्याहःपरिमर्षयः॥१२॥ टीका-स्थिर चित निरोग गुख सुख हा प्रसन्नहि रोमा विध नाडी देखने में समर्थ होता है ॥ १२ ॥ - - - Menu स्थिरचितःसन्नात्मा मनसाच विशारदः॥स्पद गुलिभिनी जानीही इक्षिणा करे ॥१३॥ टीका-चित स्थिर होय और प्रशन्न प्रारीर होय मनमें चतुर होय रेसा वैद्य दहिने हाथ को अपनी मगलियों से स्पर्श कर्के नाड़ी को जाने। १ Prone Mara । पीतमद्यश्वचलात्मा मन मूत्रादि वगयुक॥ नाडी ज्ञान समर्थःस्था For Private and Personal Use Only

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