Book Title: Nadi Darpan
Author(s): Krushnalal Dattaram Mathur
Publisher: Gangavishnu Krushnadas

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Page 81
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (नाडी प्रकाश ४ ) पंच तत्वात्मकं सर्व वेति यस्माद शेष तः ॥ तस्माद्विद्य इति क्षाती लोके भ 'वति न्यान्यथा ॥ टीका- जो इस पंच तत्वात्मक शरीर को सर्व प्रकार से जानता है इसी से उसे वैद्य कहते है । शास गुरु मुखो दीशी मादायो पास्य चा सकृत ॥ यः कर्म कुरते वैद्यः संवैद्य न्य तुत स्कराः ॥ | टीका- जो गुरु के मुख से कहे भय शास्त्र को अध्ययन करि के मोर वारं वार गुरु समीप अनुभव लेकें वैद्य कर्म करता है उसी को वैद्य कहते हैं और सब चोर है ॥ अन्यच ऐकं शाखं मधि यानोन विद्या च्छाख निश्वयं ॥ तस्माद्वहु कतः शाखं वि जा नीया चिकित्मक : ॥ टीका- तहां भी एक शास्त्र के अध्यन से शास्त्र का निश्चय बरावर जानने में नहीं आता है इस वास्ते शास्त्र प्रध्ययनक रना चाहिये प्रथीत् पढ़ना चाहिये ॥ प्रोषधं केवलं कर्तयो जानातिन चा मयं ॥ वैद्य कर्म सयत्कुर्या द्वधिमर्हति राजतः ॥ टीका- जो वैद्य रोग को नहीं पहिचानता है और औषधि कर ताहे ऐसा मनुष्य जो वैद्य कर्म करतो वो वैद्य राज़ से बध कर For Private and Personal Use Only

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