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(नाडीप्रकाश
श्री गणेशायनमः अथनाडीज्ञान प्रकाश॥ जगन्नाथकृत लिख्यते
प्रथमंगलाचरणालि
श्लोक ध्यायेत वालंप्रभाते विकसित वदना फुल्लराजीवनेवामुक्तावैदूर्यगर्भर चिरकूनकभूषणभूषितागीम्॥वि छतकीटिछटामापरि मलवहलोदि व्यू सिंहासनस्थांगी? वीतस्यैदासीम
वतिसरवननन्दन कैलिगेहम्॥१॥ टीका-हम प्रातसमें श्रीवालाजीकाध्यान करतेहैं कैसी हैवाला कि प्रफुल्लित है मुखफूले कमलकेसमाननेवमोती मोरवैदूर्य मरिणी जटितसंदरसव केभूषणकर्केभूषित हैं देहकोटि विजलीकेसमान प्रकाश बहुतसीसगंदयुक्तदेह श्रेष्ट सिंहासन पर स्थितऐसी वाला काजोमुनुय्यध्यान करता है तिसपुरुष की सरस्वतीदासी होगीरदेव तोकानंदन वन कीडाका स्थान हो।
धूतेते नरगांब्रजस्व हृदयेमात रोयो निशतस्यास्यपरिनर्ततेप्रतिदिन वाग्गद्यपद्यात्मिका लक्ष्मीस्तस्यगृह
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