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(नाडीप्रकाश ५) ने योग्य है।
तथाच आयुर्वेदं ततोऽधीत्य सका प्रात्सद्गुरो भिषक ॥ चिकित्सा रोगिणो कुर्या दन्यथा
पाप भाग्भवेत् ॥ टीका- इस वास्ते प्रथम गुरुसे आयुर्वेद का मध्य यत्न करके वैद्य रोगों की चिकत्सा करें नहि ता पाप का भागी होता है।
नाडीनांगतमाह वका ताब्रा मंदगा घात पितश्लेष्मभ्यः स्यान्नाटिकाहि कमेण ॥बीरगा तंत्रीस व राग प्रकाशात द्वन्नाडी सर्व रोग प्र
काशा॥ टीका- अवनाड़ी की गति अर्थात् चाल कहते हैं वक अर्थात् टेढी तीव्र अर्थात् चपल मंद अर्थात् धीरी ये तीन चाल ना डी की हे सो वात पित कफ इन तीनों को कम से जानी जैसे वीणा के तार मेंसे अनेक प्रकार की गति निकलती हैं नै सेही उस मनुष्य की नाड़ी मेंभी समस्त रोगों की गति आनी जाती है।
यथा बीशा' गता तंत्री सर्वान रोगान प्रकाशतः ॥ तथा हस्त गता नाडीस
वान रागान् प्रभाषते। टीका जैसे वीणा का तार सव रोगों को बताता है तैसे ही हाथ की नाही शरीर के समस्त रोगों को बताता है।
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