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नाडीदर्पणः । लेकर फिर नाडी देखे या दिखावे, तथा परिश्रमकी अवस्थामें और शोधक विचारके समयभी नाडी न देखे ऐसे समयकी नाडी विश्वास योग्य नहीं है ।
दूसरे-रोगीको बिठलाकर या लिटाकर यदि कोई आवश्यकता होयतो खडा करके रेडिअल आर्टरी Radial Artery (जो पहुचेमें अंगूठेकी जडमें त्वचाके भीतरहै उसपर वरावर तीन उंगली रखकर नाडी देखना, परंतु कभी पहुचेकी देखना असंभव होयतो अन्योन्य स्थानकी देखे, जैसैं मस्तक संबंधी रोगमें कनपटीकी नाडी तथा गठियामें पहुचेपर पटी बंधाहो अथवा दोनो हाथ कटगए हो तो प्रगंड ( वाजू ) की नाडी देखे, और कभी पैरमें टकनेके नीचे भीतरकी तरफ पोस्टीरिअर टीवीअल Posteriar Tiljial नाडीको देखते है ।।
तीसरे-वैद्यको रोगीके दोनों हाथोंकी नाडी देखनी चाहिये, इसका यह कारण ह कि ऐसा देखा गयाहै, कि एक ओरकी नाडी दुसरी नाडीसैं बड़ी होती है ।
और यहभी स्मरण रखना कि दहने हाथकी वामहाथसैं और वामहाथकी देहने हाथसैं नाडी देखे इसमें सरलता रहती है।
चतुर्थ-स्त्रीकी नाडी दहने हाथकी अपेक्षा वामहाथकी उत्तमरीतिलै विदित होती है इस्सैं प्रतीत होताहै कि स्त्रियोंकी वाए हाथकी नाडी कुछ वडी होती है। हिंदुस्थानी वैद्य जो स्त्रीके वामकरकी नाडी देखतहै कदाचित् उसका यही कारण न होय ।
पांचवे-नाडीकी स्पन्दन संख्या अर्थात् शीघ्रगति और मंदगति जाननेके पश्चात् उसके बलाबल जाननेको कुछ दवाकर फिर ढीली छोडदेवे, जिस्सै यह प्रतीत होजावे कि नाडी दबानेसैं कितनी दवती है । परन्तु इतनी न दवावे कि जिस्सै रुधिरका भ्रमण वन्दहोजावे, केवल इतनी दावेकि जिस्सै नाडीकी तडफ प्रतीत होती रहे ।
छटे-धैर्यरहित पुरुषोंकी या अत्यंत डरपोककी नाडी देखैतो उनका ध्यान वार्तालापमें लगाय लेवे, इसका यह कारणहै कि ऐसे मनुष्यों तुच्छकारणसे हृदयकी खटक न्यून होजाती है। अतएव नाडीका वृतान्त ठीक ठीक निश्चय नहीं होता। ___ अव कहतेहै कि रुदन करनेसे और मचलनेसै बालकोंके पहुचेकी नाडीका देखना कठिनहै । इसवास्ते उनको गोदीमें बैठाल खिलौने आदिका लोभ देके उनके छातीपर कान लगाकर हृदयकी धडधडाटका निश्चय करना । यदि नाडीकाही देखना जरूरी होवेतो निद्रा अवस्थामें देखनी चाहिये । . 'सातमे-नाडी देखनेके समय यहभी अवश्य ध्यान रखना चाहिये कि नाही.
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