Book Title: Nadi Darpan
Author(s): Krushnalal Dattaram Mathur
Publisher: Gangavishnu Krushnadas

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Page 75
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६२) नाडीदर्पणः। हाल और रुपिरगणका वृत्तान्त उत्तमरीतीसे प्रतीत होता है । प्रत्येक लहर में एक रेखा उठनेकी होती है फिर मुख्नेकी और फिर उतरनेकी तथा उतरनेकी लहरमें दो लहर प्रगट होती है इन लहरोंकाभी चिन्ह स्फिग्मोग्राफ यंत्रमें लिखा है सो देखलेना। खडीरेखा हृदयके संकोच होनेसे होती है और मुरडनेका कोना नाडियोंके किसीप्रकार संकोच से होताहै और जिससमय हृदयके संकोचसै रुधिर अयाटीमें पहुँचताहै तो पहली रेखा प्रगट होती है फिर अपार्टीके किवाड बंदहोनेसे दूसरी लहर खांचेतक वनती है अयाीके सुकडनेके पीछे रुधिर आगेको बढजाताहै और दूसरी लहर परिपूर्ण होकर एकवार हृदयके खटकेकी चिन्हतरेखा संपूर्ण होजाती है । इति नाडीदर्पणे ऐंग्लैंडीयनाडीपरीक्षावर्णनं नाम पञ्चमावलोकः । इति श्रीमाथुर कृष्णलालपुत्रदत्तरामेण रुइलिते आयुर्वेदोद्धारे बृहन्निवण्टुरनाकरान्तर्गते नाडीदर्पणे ऐंग्लैंडीयनाडीपरीक्षावर्णनं नाम पञ्चमावलोकश्चाष्टत्रिशस्तरङ्गः ॥ ३८॥ समाप्तोयंनाडीदर्पणाख्यो ग्रन्थः। पुस्तक मिलनेका ठिकाना ___ गंगाविष्णु श्रीकृष्णदास "लक्ष्मीवेङ्कटेश्वर" छापाखाना कल्याण-मुंबई. For Private and Personal Use Only

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