________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
आयुर्वेदोक्तनाडीपरीक्षा
३५.
मांसात्स्थिरवड़ा नाडी दुग्ध शीता वलीयसी । गुडैः क्षीरेश्व पिष्टैश्च स्थिरा मन्दवहा भवेत् ॥ १०५ ॥ द्रवेऽतिकठिना नाडी कोमला कठिनापि च । द्रवद्रव्यस्य काठिन्ये कोमला कठिनापि च ॥ १०६ ॥
अर्थ- मांस भक्षणसें नाडी मंदगामिनि होती है, दूधके पीनेसें नाडी शीतल और बलवती होती है, तथा गुड, दूध, और पिष्टपदार्थ ( चूनके, पिट्टी आदिके पदार्थ) भक्षण नाडी चंचलतारहित मंदगामिनी होती हे, द्रवपदार्थ ( कढी, पने, श्रीखंड आदि ) भोजनसे नाडी कठिन होती है और कठोर (लड्डुके सुहार आदि नाडी कोमल होती है यदि द्रवपदार्थ कुछ कठोर होयतो नाडी कोमल और कठोर उभय स्वभाववती होती है ॥ १०५ ॥ १०६ ॥
उपवासाद्भवेत्क्षीणा तथा च द्रुतवाहिनी ।
संभोगान्नाडिका क्षीणा ज्ञेया द्रुतगतिस्तथा ॥ १०७ ॥
अर्थ - उपवास ( निराहार ) से नाडी क्षीण और शीघ्रवाहिनी होती है एवं स्त्री संभोग से नाडी क्षीण और शीघ्र चलनेवाली' होती है ॥ १०७ ॥
कुपध्यवसनाडीकीचाल |
उष्णत्वं विषमावेगा ज्वरिणां दधि भोजनात् ॥
१०८ ॥ अर्थ - यदि ज्वरवान् पुरुष दहि खाय तो उसकी नाडी गरम और विषमबेगबती होती है ॥ १०८ ॥
इति श्रीमाथुरकृष्णलालाङ्गजदत्त रामेणसङ्कलिते नाडीदर्पणे द्वितीयावलोकः
अब इसके उपरान्त कितनेक रोगोंकी नाडीकी जैसी अवस्था होती है, उसको लिखते है, तहां रोगनिरूपण में प्रधानता करके प्रथम ज्वरनिरूपण करते है ।
ज्वर के पूर्व रूप में ।
अग्रहेण नाडीनां जायन्ते मन्थराः प्लवाः । प्लवः प्रबलतां याति ज्वरदाहाभिभूतये ॥ १ ॥ सान्निपातिकरूपेण भवन्ति सर्ववेदनाः ।
अर्थ-ज्वर आनेवाली अवस्था के कितनेक क्षण पहिले अंगमें पीडा होने लगे, नाडी मंथर ( मंद) भाव से मंडकाकी ' चाल चलने लगे तथा दाह ज्वरकी पूर्वाव
For Private and Personal Use Only