Book Title: Nadi Darpan
Author(s): Krushnalal Dattaram Mathur
Publisher: Gangavishnu Krushnadas
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आयुर्वेदाक्तनाडीपरीक्षा हंसगति धराम् । वातश्लेष्मसमुद्भूतां भाषन्ते तद्विदो जनाः ॥५१॥ मण्डूकादिगतिं नाडी मयूरादिगति तथा । पित्तश्लेष्मसमुद्भूतां प्रवदन्ति महाधियः॥५२॥ अर्थ-बारबार सर्पगति ( टेढी ) और बारबार मेंडकाकी गति ( उछलती) नाडी चले उसको चतुरवैद्य वातपित्तकी नाडी कहतेहै । तथा कभी सर्पगति और कभी राजहंसकी गतिसं नाडी चले उसको पंडितजन वातकफकी नाडी कहतेहै । एवं कभी मेडक और कभी मोरकी चाल चलं उस नाडीको पित्तकफकी वृद्धि वान् वैद्य कहतेहै ॥ ५१ ॥५२॥
प्रकारान्तर । वातेऽधिके भवेन्नाडी प्रव्यक्ता तर्जनीतले । पित्ते व्यक्ता मध्यमायां तृतीयाङ्गुलिगा कफे ॥५३॥ तर्जनीमध्यमामध्ये वातपित्ताधिके स्फुटा । अनामिकायां तर्जन्यां व्यता वातकफे भवेत् ॥५४॥ मध्यमानामिकामध्ये स्फुटा पित्तकफेऽधिके । अङ्गुलित्रितयेऽपि स्यात्प्रव्यक्ता सानिपाततः॥५५॥ अर्थ-वाताधिक्य नाडी तर्जनीकं नीचं चलती है । पित्तकी नाडी मध्यमा ऊंगलीके नीचे । और कफकी नाडी तीसरी ऊंगली अर्थात् अनामिकाके नीचे चलती है । वातपित्तकी नाडी तर्जनी और मध्यमाके नीचे चलती है । वातकफकी नाडी अनामिका और तर्जनीके नीचे चलती है । मध्यमा और अनामिकाके नीचे पित्तकफाधिक नाडी चलतीहै । और तीनी ऊंगलियोंके नीचे सन्निपातकी नाडी गमन करती है ॥ ५३ ॥ ५४ ॥ ५५ ॥
वक्रमुत्पत्य चलती धमनी वातपित्ततः । वहेडक्रञ्चमन्दञ्च वातश्लेष्माधिकं त्वचः॥५६॥ उत्प्त्य मन्दं चलति नाडी पित्तकफेऽधिके।
अर्थ-वातपित्ताधिक्यसै नाडी टेटी और उछलती हुई चलती है । वातकफसैं टेढी और मन्दगमनकरती है पित्तकाधिक्यमें नाडी उछलीहुई मंद गमन करती है ॥५६॥
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