Book Title: Nadi Darpan
Author(s): Krushnalal Dattaram Mathur
Publisher: Gangavishnu Krushnadas

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Page 25
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नाडीदर्पणः। पाणिपात्कण्ठनासाक्षिकर्णजिह्वान्तमेद्रगाः॥ वामदक्षिणतो लक्ष्याः षोडश प्राणवोधकाः॥५१॥ अर्थ-हात, पैर कंठ, नासिका, नेत्र, कान, जिव्हाका अंत्यभाग और मेद्र (योनि लिंग ) इनके वामभाग और दक्षिणभागमें नाडी देखनी क्योंकि ए १६ नाडी प्राणबोधकहै ऐसा जानना ॥ ५१ ॥ कण्ठनाडी। आगन्तुकं ज्वरं तृष्णामायासं मैथुनं क्रमम् ॥ भयं शोकं च कोपञ्च कण्ठनाडी विनिर्दिशेत् ॥५२॥ अर्थ-आगंतुकज्वर, तृषा, परिश्रम, मैथुन, ग्लानि, भय, शोक, और कोप इतने रोगोंको कंठनाडी देखकर कहे ॥ ५२ ॥ नासानाडी। मरणं जीवनं कामं कण्ठरोगं शिरोरुजाम् ॥ श्रवणानिलजान् रोगानासानाडी प्रकाशयेत् ॥५३॥ अर्थ-मरण, जीवन, कामबाधा, कंठरोग, मस्तकरोग, कानके, और पवनके रोगोंको नासिकाकी नाडी प्रकाशित करती है ॥ ५३॥ उक्त नाडियोंका प्रमाण । हस्तयोश्च प्रकोष्टान्ते मणिबन्धेऽङ्गलिद्वयम् । पादयोनांडिकास्थानं गुल्फस्याधोऽङ्गुलिद्रयम् ॥ ५४॥ कण्ठमूलेऽङ्गलिद्वन्दं नासायामङ्गुलिद्वयम् । एवमप्यङ्गुलिद्वन्द्वमग्रतः कर्णरन्ध्रयोः ॥१५॥ अर्थ-अब अन्यनाडी किस किस भागमेंहै और वो कितनी बडी है यह कहते है । तहां दोनो हाथके प्रकोष्ठान्तमें जहां मणिबंध अर्थात् पहुचाहै उसजगे दो अंगुल नाडी देखनेका स्थानहै और पैरोंमें टकनाके नीचे दो अंगुल नाडीका स्थान है तथा कंठकी जडमें अर्थात् हसलीमें दो अंगुल एवं नासिकामें दो अंगुल नाडीका स्थानहै । इसीप्रकार दोनो कर्णके छिद्रके अग्रभागमें भी दो दो अंगुल नाडीके परीक्षाका स्थानहै । तात्पर्य यहहै कि जब हाथकी नाडी प्रतीत नहोवे तब इन स्थानोकी नाडी देखनी५५ For Private and Personal Use Only

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