Book Title: Nadi Darpan
Author(s): Krushnalal Dattaram Mathur
Publisher: Gangavishnu Krushnadas

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Page 28
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आयुर्वेदाक्तनाडीपरीक्षा करचुकाहो, और सुखपूर्वक घाँटुओंके भीतर हाथको करे सावधानी से बैठाहो, ऐसे रोगीकी नाडीको वैद्य देखे, क्योंकि ऐसे मनुष्यकी नाडी भली रीतिसैं जानी जाती है ॥ ६ ॥ नाडीदर्शनमें अयोग्य । धूर्त्तमार्गस्थविश्वासरहिताज्ञातगोत्रिणाम् । विनाभिशंसनं वैद्यो नाडीद्रष्टा च किल्विषी ॥७॥ अर्थ-अब कहते । ऐसे मनुष्योंकी नाडी वैद्य न देखे, कि जो धूर्त है तथा मार्गमें चलते चलते दिखाने लगे, और जिनको विश्वास नहींहै तथा जिसकी जात पाँति वैद्य नहीं जाने, और विनकहे अर्थात् जबतक रोगी अथवा उस रोगीके बांधव न कहे तबतक वैद्य नाडी न देखे, यदि उक्तमनुष्योंकी वैद्य नाडी देखे तो पापभागी होताहै ॥ ७ ॥ परीक्षाप्रकार। सव्येन रोगधृतिकूपरभागभाजापीड्याथ दक्षिणकराङ्गुलिकात्रयेण। अङ्गुष्टमूलमधिपश्चिमभागमध्ये नाडी प्रभञ्जनगतिं सततं परीक्षेत् ॥८॥ अर्थ-अब नाडी परीक्षाका प्रकार लिखते हैकी रोगके धारण करने वाली जो पहुचे नाडी है उसको दहने हाथकी तीन उंगली (तर्जनी , मध्यमा और अ. नामीका ) मैं दाबकर तथा रोगीके हाथकी कोहनीको दुसरे हाथमैं अच्छी रीतिसें पकडकर उसके अंगूठेकी जडके नीचे वातगती नाडीकी वारंवार परीक्षा करे तात्पर्य यह है कि प्रथम दहने हाथमैं कोहनीको पकडे फिर वाहसैं हाथको हटाय नाडीको दावे, और वाऐ हाथमैं रोगीके हाथको साधकर नाडीकी परीक्षा करे। इसजगे " दक्षिणकराङ्गुलिकात्रयेण" यह पद केवल उपलक्षण मात्रको धराहै किंतु नाडी वामहाथसैं भी देखे यदि ऐसा न मानोंगे तो फिर अपनी नौडीका देखना किसप्रकारहोगा । और वाजे वैद्य दहने हाथकी नाडी वामहाथसैं और वामहाथकी दहनसैं देखतेहै यह ठीक है । कदाचित् कोई शंकाकरे कि एकही हाथकी नाडी देखेनेसैं रोग जानाजाताहै फिर दोनो हाथकी देखना व्यर्थहै इसलिये कहतेहै कि बहुत से मनुष्योंके वाम For Private and Personal Use Only

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