Book Title: Nadi Darpan
Author(s): Krushnalal Dattaram Mathur
Publisher: Gangavishnu Krushnadas

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Page 22
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आयुर्वेदोक्तनाडी परीक्षा अर्थ-तहां देहकी नाडी तीन प्रकारकी है, एक पवनको वहती है दूसरी मल, मूत्र, हड्डी, और रसको वहती है । तीसरी आहारको वहती है ॥ ३७॥ कन्दमध्ये स्थिता नाडी सुषुम्नेति प्रकीर्त्तिता । तिष्ठन्ते परितः सर्वाश्चस्मिन्नाडिकास्ततः ॥ ३८ ॥ अर्थ - नाभीके मध्य में सुषुम्ना नाडी स्थित है, इसी नाभिचक्र और सुषुम्ना नाडीके चारों तरफ संपूर्ण नाडी स्थित है ||३८|| नाभिमध्ये स्थितानाडी गोपुच्छाकृति सर्वतः ॥ तिष्ठन्ते परितः सर्वास्ताभिर्व्याप्तमिदं वपुः ॥ ३९॥ अर्थ- संपूर्ण नाडी नाभिके बीच में गोपुच्छके सदृश स्थितही सर्वत्र फेल रही हैं । जिनसे यह देह व्याप्त होरहांहे जैसे गौकी पूछ ऊपरके भागमें मोटी होती है और नीचेको क्रमसैं पतली होती है, उसीप्रकार नाडीनको जानना ये सब नाभीसे निकलकर चारों तरफ फैल गई है ॥ ३९ ॥ सार्द्धस्त्रिकोट्यो नाड्योहि स्थूलाः सूक्ष्माश्च देहिनाम् ॥ नाभिकन्दनिबद्धास्तास्तिर्यगूर्ध्वमधः स्थिताः ॥ ४० ॥ अर्थ - इन मनुष्योंके देहमें छोटी और बडी सब मिलकर ३५०००००० साडेतीन करोड नाडी है, वो सब नाभिरौं बंधी हुई तिरछी, ऊपर, और देहके अधोभागमें स्थित है ॥ ४० ॥ तिस्रः कोट्योऽर्द्धकोटी च यानि लोमानि मानुषे ॥ नाडीमुखानि सर्वाणि घर्मबिन्दून्क्षरन्ति च ॥ ४१ ॥ अर्थ - ऊपरके लोक में जो साडेतीन करोड नाडी कही हैं, वो मनुष्यके देहमें जित - मे रोमहे वो सब उन नाडियोंके मुखहै, उनसे पसीना झडता रहता है ॥ ४१ ॥ द्विसप्ततिसहस्रन्तु तासां स्थूलाः प्रकीर्तिताः ॥ देहे धमन्यो धन्यास्ताः पञ्चेन्द्रियगुणावहाः ॥ ४२ ॥ अर्थ-जन साडेतीन करोड नाडियोंमें १०७२ एकहजार और बहत्तर स्थूल नाडी है, वो धमनी देहमें पवनको धमाती है । और पंचेन्द्रियों के गुण ( शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध ) को बहती है ॥ ४२ ॥ तासांच सूक्ष्मसुषिराणि शतानि सप्त स्वच्छानि यैरसकृदन्नरसं वहद्भिः ॥ For Private and Personal Use Only

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