________________
"यदि व्यक्ति के असाता वेदनीय का ही जोर हो तो वह मर कर भी ऐसी योनि / गति में पैदा होता है जहाँ वर्तमान से भी अधिक दुःख होता है.... आयुष्यकर्म के बन्ध के अनुसार हमें परलोक में जन्म लेना पड़ता है"'" | "
" सम्बन्ध का टूटना अलग बात है और ममत्व का त्याग अलग बात है । दुनिया से सम्बन्ध तोड़ने के बावजूद भी यदि हृदय से ममता का त्याग / विसर्जन न हो तो उस ममत्व के कारण सतत कर्मबन्ध चालू ही रहता है।
'दीपक' ! एक ऐसा सम्बोधन है जो सिर्फ एक मुट्ठी भर धूल का बना है और वह धूल भी कैसी ? जो बस, एक ठोकर में टुकड़े-टुकड़े हो जाने वाली है । लेकिन जब हम सारी आशाएँ खो बैठते हैं. भयावनी रात में दिशा भूल कर भटक जाते हैं तब कहीं ने दिखाई देती मद्धिम सी रोशनी वाला दीपक हममें प्रारणों का संचार कर डालता है ।
जब कभी पाठक प्रस्तुत पुस्तक का अध्ययन करेगा और गहरे कहीं श्रात्मानुभव तक उतरेगा तब पायेगा कि दीपक सम्बोधन कितना मर्मस्पर्शी और सार्थक है । प्रत्येक पाठक को ऐसा जान पड़ेगा कि वही दीपक है, उसे ही सम्बोधित कर सारी बातें कही जा रही हैं ।
सच लिखूं तो इस पुस्तक का सर्वाधिक सशक्त पक्ष इसकी पत्रात्मक शैली ही है ।
मैंने पुस्तक को प्राद्योपान्त पढ़ा है और पाया है कि जो भी इस प्रस्तावना में लिखा गया है मात्र उतने से पुस्तक का सही मूल्यांकन नहीं किया जा सकता, तदपि यथाशक्य पुस्तक के मूल भाव को प्रतिबिम्बित करने का प्रयास मैंने किया है ।
( 11 )