Book Title: Mruganka Charitram Author(s): Ruddhichandraji Publisher: Shravak Hiralal Hansraj View full book textPage 8
________________ मृगांक | चरित्रम् // 7 // अर्थः-तेणीनी कृतिथी नेत्रोवडे मृगने जीततो, गतिथी मत्त हस्तिनो तिरस्कार करतो अने चहेराए करी चंद्रमाने || | हरावतो मृगांक नामे पुत्र उत्पन्न थयो. // 25 // वृद्धिं प्राप कुमारोऽसौ यावदेवाष्टवार्षिकः / मुक्तः पित्रा गुरूपान्ते कलाग्रहणहेतवे // 26 // यतः___अर्थः- अनुक्रमे वृद्धि पामीने ए कुमार ज्यारे आठ वर्षनो थयो त्यारे पिताए कळा शीखवा माटे तेने गुरुपासे मोकल्यो. // 26 // केमकेमाता शत्रुः पिता वैरी येन बालो न पाठितः / न शोभते सभामध्ये हंसमध्ये बको यथा // 27 // . अर्थः-जे माता पिता बालकने भणावता नथी ते शत्रु समजवा, कारणके हंसना टोळामां जेम कागडो तेम ते अपठित बाळक पण शोभतो नथी. // 27 // लालयेत् पञ्च वर्षाणि अष्ट वर्षाणि पाठयेत् / प्राप्ते तु षोडशे वर्षे पुत्रं मित्रं समाचरेत् // 28 // ___ अर्थः-पुत्रनुं पांच वर्ष सुधि लालन करवू, आठमे वर्षे अभ्यास कराववो अने शोळ वर्षनो ज्यारे पुत्र थाय त्यारे मित्रनी समान गणवो. / / 28 // अथ तत्रैव नगरे धनञ्जयो महर्द्धिकः / वसति प्रमदा तस्य प्रिया धनवती शुभा // 29 // अर्थ:-हवे तेज नगरमा एक धनंजय नामे शेठ रहेतो हतो, तेने धनवती नामे सुंदर पत्नी हती. // 29 // / P.P.AC.Gunratnasun M.S.. Jun Gun Aaradhak TrustPage Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64