Book Title: Mruganka Charitram
Author(s): Ruddhichandraji
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ मृगांक // 51 // ____ अर्थः-(सहस्रांके कीधुं के) दुष्ट बुद्धिवाळा अने मारा अपराधरुपी पांजरामां पूरायेला तने हुं जीवीश त्यांसुधी / छोडीश नहि. // 36 // || चरित्रम् मत्पदोर्यदि त्वं श्रेष्ठिन् ! शोषयेघृतसत्पलम्। सदा त्वां सादरात्सद्यो मुश्चामि ग्रामबन्धनात् // 37 // ||86644 ___ अर्थः-वळी हे शेठ ! जो तुं एक पळी घी मारे पगे चोळी आप तो हुँ तने आदरथी तुरतज ग्राम-बंधनथी छोडं. अङ्गीचकार स श्रेष्ठी पूर्वं यद् भणितं वचः। पश्चात् शय्यां महारम्यां सुप्तो हि प्रति शौल्किकः // 38 // ___ अर्थः-आ वचन शेठे अंगीकार कर्यु एटले सहस्रांक मनोहर शय्यामा सुतो. // 38 // . . ततः परं मृगाको हि चकार घृतमर्दनम् / इतः तवतस्तन्द्रा शौल्किकेन कृता परा // 39 // . .. अर्थः-अने मृगांक घीथी मर्दन करवा लाग्यो, दरम्यान (सहस्रांक) कपट-निद्राथी सुइ गयो. // 39 // | पदस्पर्शवशादाज्यं विग्यरितं च भाजने / अथ शोषमुपैति न मृगाङ्केनेति चिन्तितम् // 40 // ____ अर्थः-पगना स्पर्शथी घी उनुं थवा लाग्यु पण शोषाय नहिं, तेथी मृगांके विचायु के, // 40 // घोरनिद्रावशीभूतं ज्ञात्वा शौल्किकमुद्धतम् / पश्चाद् मृगाङ्कवेष्ठिना दत्तमाज्यं मुखे भृशम् // 4 // // अर्थः-आ दाणनो अधिकारी घोरनिद्रामा छे एम जाणीने शेठे ते घी पोताना मोढामां मुकी दीधुं. // 41 // // 1 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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